________________
[१६] ३१ श्री नेमिनाथ जिन चैत्यवन्दन भाव धरी भवियां भजो, श्री नेमि जिंनद । समुद्र विजय राणी शिवा, मन मोहन चन्द ॥१॥ जस दश धनु तनु मान वान, उमद्या धन सरिखो । शंख लंछन सोहामनो, देखी ने हरखो ॥२॥ जीवित वर्ष सहसनुए, सोरीपुर उत्पन्न । मान कहे जिनवर नमे, नर नारी ते धन्य ॥३॥
३२ श्री पार्श्व जिन चैत्यवन्दन पास जिंणद सदा जपो, मन वंछित पूरे । भव भय भावठ भंजणो, दुःख दोहग चूरे ॥१॥ अश्वसेन नृप कुल तिलो, वामा सुत शस्त । वाणारसी ए अवतो, काय नव हस्त ॥२॥ नील वर्ण तनु फणी ए, जीवित जस शत वर्ष । मान विजय प्रभु नाम थी, पामे परिगल हर्ष ॥३॥
३३ श्री महावीर जिन चैत्यवन्दन श्री वर्धमान जिन भान आण, निज मस्तक वहीये । सिंह लछंन परे सर्वदा, जस चरणे रहीये ॥१॥ क्षत्रीय कुंड ग्राम नयर, सिद्धार्थ भूप । त्रिशला राणी उदर हंस, हेम वान अनूप ॥२॥ जीवित बहोतेर वर्ष नुए, सात हाथ तनु मान । मान विजय वाचक करे, जिनवर ना गुणगान।।३।।