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[१७] २५ श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का चैत्यवन्दन महसेन मोटो राजीओ, सती लक्ष्मणा नारी । चन्द्र समुज्जव वदन क्रांति, जनम्यो जय कारी ॥१॥ चन्द्र पुरी नयरी जेहनी, चन्द्र लछंन कहीये । चन्द्र प्रभ जिन आठमा, नामे गह गहीये ॥२॥ दोढ सो धनुष नु जिन तनु ए, दश लाख पूर्व आय । रुप विजय प्रभु थी, दिन दिन दौलत थाय ॥३॥
२६ श्री सुविधि जिन चैत्यवन्दन सुविधि भली विधी सेवतो, भव भावठ भंजे । सुग्रीव राय सुत सेवतां, दुश्मन नवि गंजे ॥१॥ मगर लछंन मन मोहतो, नयरी काकंदी। दोय लाख पूरव आय, बोले जय बन्दी ॥२॥ एकसो धनुष वर देहडी, उज्जवल वर्ण अपार । रुप विजय कहे भवि नमो, वामा माता मल्हार ॥३॥
२७ श्री शीतल जिन चैत्यवन्दन भदिलपुर, दृढ़रथ राय, नंदा पटराणी। शीतल जिनवर जन्मतां, जगकीर्ति गवाणी॥१॥ श्री वत्स लछंन ने धनुष, देह सुवर्ण समानी । एक लाख पूर्व आयुमान, कहे केवल नाणी ॥२॥ सुख दायक दशमा सदा ए, दे दौलत भरपूर । रुप विजय कहे भवि नमो, प्रह उगमते सर ॥३॥