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१५ सौभाग्य पंचमी का चैत्यवन्दन
श्री सौभाग्य पंचमी तणो, सयल दिवस शणगार । पांचे ज्ञान ने पूजिये, थाय सफल अवतार ॥१॥ सामायिक पोसह जीवसे, निरवद्य पूजा विचार । सुगंध चूर्णादिक थकी, ज्ञान ध्यान मनोहार ॥२॥ पूर्व दिशि उतर दिशि पीठ रची त्रण सार । पंच वर्ण जिन बिंब ने, भापीजे सुखकार ॥३॥ पंच पंच वस्तु मेलवी, पूजा सामग्री जोग । पंच वर्ण कलशा भरी हरीये दुःख उपभोग || ४ || यथा शक्ति पूजा करो, मति ज्ञान ने काजे । पंच ज्ञान मां धुरे का श्री जिन शासन राजे ॥५॥ मति श्रुत विण होवे नहीऐ, अवधि प्रमुख महा ज्ञान । ते माटे मति धुरे का, मति श्रुत मां मतिमान ॥६॥ क्षय उपशम आवरण नो, लब्धि होये समकाले । स्वाम्यादिक थी अभेद छे, पण मुख्य उपयोग काले ॥७॥ लक्षण भेदे भेद छे, कारण कारज योग ।
मति साधन श्रत साध्य छे, कंचन कलश संयोग ॥ ८ ॥ परमातम परमेसरुये, सिद्ध सकल भगवान | मतिज्ञान पामी करी, केवल लक्ष्मी निघान ॥६॥