Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

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Page 10
________________ प्रस्तुत प्रन्थ स्वर्गीय नाहरजी के कतिपय साहित्यिक प्रबन्धों का संकलन है, जिनको उन के सुयोग्य पुत्र और मेरे अत्यन्त प्रिय मित्र श्री विजयसिंहजी नाहर ने प्रकाशित किया है। मुझे स्वर्गीय पूर्णचन्द्रजी के दर्शन का ही सौभाग्य मिला था, क्यों कि मैं उनके निकट सम्पर्क में आता और उनकी कुछ सेवा कर सकता, इससे पहले ही हमारे दुर्भाग्य ने उन्हें हमारे बीच में से उठा लिया। मुझे नहीं मालूम था कि उस महापुरुष के इन कतिपय निबन्धों के प्राव.थन रूप में मुझे कुछ लिखना पड़ेगा। पर मेरे लिये यह कम सौभाग्य का विषय नहीं है कि जिस नररत की आजीवन साहित्य-साधना के चरणों पर मैं सादर नत-मस्तक हूँ, आज इस लेखनी द्वारा उनकी अमर वचनसम्पत्ति की सेवा कर रहा हूँ। आज उन्हीं के विषय में ये दो पंक्तियाँ लिखने का सौभाग्य मुम अल्पज्ञ को मिला है। श्रीयुक्त नाहरजी जैन समाज के एक अत्यन्त आदरणीय पुरुष थे जिनका अपना निजी व्यक्तित्व था जैसा कि प्रत्येक साहित्यिक का होता है। सच्चा साहित्य सच्चे व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। यह आश्चर्य का ही विषय है कि मुर्शिदाबाद के एक धनी परिवार में जन्म लेकर भी नाहर जी किस प्रकार साहित्य और पुरातत्व की रुचिर लगन और साधना उत्पन्न कर सके। उनके जीवन की जो सामग्री हमें उपलब्ध होती है उससे हमें तो कोई भी ऐसी बात नहीं मालूम होती कि जिसके आधार पर हमें यह कहने में हिचकिचाहट हो कि श्री नाहरजी में साहित्य और पुरातत्व-शोध की प्रतिभा और प्रवृत्ति जन्मजात और संस्कारगत थी। अपनी आमरण साहित्य साधना से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया था कि उनके जीवन का प्रत्येक अंश साहित्य और इतिहास की सेवा के लिये था। उन के संग्रह कार्य के लिये मित्रों से सुना जाता है कि एक अखबार के कवर के लिये वे सैकड़ों कठिनाइयों को भी परवाह न कर के बेहद उत्साह के साथ चेष्टारत रहते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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