Book Title: Parshwanath Charitra
Author(s): Kashinath Jain Pt
Publisher: Kashinath Jain Pt

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Page 7
________________ [ ४ ] लगती, मनुष्यके हृदयमें सदा अच्छे विचारोंका उदय हो, अच्छीअच्छी अभिलाषायें और अच्छी-अच्छी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हों, इसलिये उसे सदा किसी सद्ग्रन्थका मनन करते रहना चाहिये । प्रस्तुत पार्श्वनाथ चरित्र इसी कोटिका ग्रन्थ है । इसे पढ़ने से अपूर्व और अपरिमित आनन्द प्राप्त होता है । स्थान-स्थान पर जो उपदेश अंकित किये गये है, उन्हें पढ़ कर चित्त निर्मल हो जाता है और उदार, पुण्यवान एवम् धर्मवीर नर-नारियोंके चरित्र पढ़ कर हृदयमें उच्च भावनायें जागृत होती हैं । प्रस्तुत ग्रन्थमें भावकके बारह व्रतोंका उसके अन्तर्गत पन्द्रह कर्मादान और बाईस अभक्ष्यादिका स्वरूप बहुत ही अच्छी तरह बतलाषा गया है। साथ ही निरतिचार पूर्वक रहने के लिये उसके अतिचारोंका भी वर्णन कर दिया गया हैं । कर्म विषयक बहुत सी बातें तीसरे सर्गमें अङ्कित की गयी हैं । मिथ्यात्वका त्याग कर सम्यक्त्व ग्रहण करना धर्मनिष्ठ व्यक्तिके लिये अधिक आवश्यक होनेके कारण चौथे सर्गमें उसका वर्णन किया गया है और रोचक कथाओं द्वारा उनकी पुष्टी की गयी है । इस प्रकार धर्मके अनेक गहन सिद्धान्त यथास्थान बड़े ही उत्तम डंगसे दे दिये गये हैं और इसीके कारण पुस्तक की उपयोगिता बहुत अधिक बढ़ गयी है । सारा ग्रन्थ आदिसे अन्त तक ध्यानपूर्वक मनन करने योग्य है । प्रस्तुत ग्रन्थको रोचक बनानेके उद्देशससे हमने इसमें यथा स्थान चउदह रंग-विरंगे चित्र भी दे दिये हैं। आशा है, पाठकोंको

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