Book Title: Parmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Author(s): Yogindudev, Samantbhadracharya, Vidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 9
________________ चारित्र विभूषण पूज्य मुनिश्री १०८ विवेकसागरजी महाराज का ककरणवाली में वर्षायोग परम हर्ष है कि हमारे ग्राम कुकरणवाली में महान् पुण्योदय से परमतपस्वी चारित्र विभूषण श्री १०८ श्री विवेकसागरजी महाराज का ससंघ इस वर्ष सं० २०३६ में ११वां वर्षायोग सानंद सम्पन्न हुआ । यहां महाराज श्री के विराजने से महती अपूर्व धर्म-प्रभावना हुई। अब तक हमारे नगर में किसी भी मुनिराज का चातुर्मास हुआ नहीं; ब हमारे पुण्योदय से हमें यह अवसर पूज्य महाराज के अनुग्रह से प्राप्त हुआ । महाराज श्री एक बहुत ही सरल प्रकृति, शान्त स्वभाव महापुरुष हैं; हर समय धर्म-साधन में संलग्न रहते हैं । आपकी घोर तपश्चर्या को देखकर इस युग में श्राश्वर्य हुये बिना नहीं रहता । प्रतिदिन ६ घंटे लगातार एक श्रासन से ध्यान लगाना, एक आदर्श महापुरुष व उच्चकोटि के साधु व महासंतों के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता । यह सरल स्वभाव का ही परिणाम है कि कुचामन जैसे बड़े शहर को छोडकर श्रापने एक छोटे ग्राम में चातुर्मास करने का निश्चय किया । श्रापकी त्याग की महिमा को देखकर जैन समाज ही नहीं; श्रपितु समस्त ग्राम के श्रर्जनी भी प्रापकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते । आपका प्रवचन त्याग और मोक्षमार्ग का सही रास्ता प्रदर्शित करता है । आपके रोज के प्रवचन से प्रभावित होकर गांव के कई भाईयों ने बहुत से त्याग किये । यह एक प्रादर्श उच्चकोटिका संघ है । इस संघ की विशेष बात यह है कि सिवाय धर्मवर्चा के कभी भी कोई बात नहीं होती । (१) पूज्य श्री १०५ श्री विपुनमति माताजी का सरल व शान्त स्वभाव जैन धर्म के गौरव को प्रकट करता है । उनका नित्य प्रनि दोपहर में होने वाला प्रवचन काफी सरल तथा त्याग की भावना से भरपूर होता है । (२) श्री कुसुमबाई ब्रह्मचारिणी का त्याग ग्राज यह बतलाता है कि ये धागे जाकर कितनी उच्च विचारों वाली महातपस्विनी होंगी । निश्चय ही श्राप सहनशील हैं कि कर्मोदय से प्राये दिन आहार में अंतराय आना और फिर भी प्रसन्न चित्त रहना । यदि

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