Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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ROSSIGERAGARSO
पचावियस्सऽवि तहा सुत्ते मुंडावणाइवि णिसिद्धं । जिणमयपडिकुट्ठस्सा पुवायरिया तहा चाहू ॥५७३॥ जिणवयणे पडिकुटुं जो पवावेइ लोभदोसेणं । चरणहिओ तवस्सी लोएइ तमेव चारित्ती॥ ५७४॥ पवाविओ सिअत्ति अ मुंडावेउं अणायरणजोगो। अहवा मुंडाविते दोसा अणिवारिया पुरिमा ॥ ५७५ ॥
मुंडाविओ सिअत्ति अ सिक्खावेउं अणायरणजोगो।
अहवासिक्खावितोपुरिमपयऽनिवारिआ दोसा ॥ ५७६॥ सिक्खाविओ सिअत्ति अउवठाउं अणायरणजोगो। अहवा उवठाविते पुरिमपयनिवारिया दोसा ॥५७७॥ उवठाविओ सिअत्ति असंभुंजित्ता अणायरणजोग्गो। अहवा संभुंजते पुरिमपयऽनिवारिआ दोसा॥५७८॥ संभुजिओ सिअत्ति अ संवासेउं अणायरणजोगो । अथवा संवासंते दोसा अणिवारिआ पुरिमा ॥ ५७९॥ एमाई पडिसिद्धं सवं चिअ जिणवरेहजोगस्स । पच्छा विन्नायस्सवि गुणठाणं विजनाएणं ॥५८०॥दारं॥ कालकमेण पत्तं संवच्छरमाइणा उ जं जम्मि । तं तम्मि चेव धीरो वाएज्जा सो अ कालोऽयं ॥५८१॥ तिवरिसपरिआगस्स उ आयारपकप्पणाममज्झयणं । चउवरिसस्स उ सम्मं सूअगडं नाम अंगंति ॥ ५८२ ।। दसकप्पचवहारा संवच्छरपणगदिक्खिअस्सेव । ठाणं समवाओत्ति अ अंगेए अट्ठवासस्स ॥ ५८३ ॥ दसवासस्स विआहो एक्कारसवासयस्स य इमे उ । खुड्डियविमाणमाई अज्झयणा पंच नायवा ॥ ५८४ ॥ वारसवासस्स तहा अरुणुववायाइ पंच अज्झयणा । तेरसवासस्स तहा उट्ठाणसुआइआ चउरो ॥५८५ ॥
ACCORRESPECIALSOCRA
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