Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 556
________________ श्रीपञ्चव. ३ वयठवणा ॥२६९॥ Jain Education नीअदुवारंधारे गवक्खकरणाइ पाउकरणं तु । दवाइएहिं किणणं साहूणढाए कीअं तु ॥ ७४७ ॥ पामिचं जं साहूणऽट्ठा उच्छिदिडं दिआवेइ । पल्लहिउं च गोरसमाई परिअहिअं भणिअं ॥ ७४८ ॥ सग्गामपरग्गामा जमाणिउं आहडंति तं होइ । छगणाइणोवलित्तं उम्मिंदिअ जं तमुभिण्णं ॥ ७४९ ॥ मालोहडं तु भणिअं जं मालाईहिं देह घेत्तूणं । अच्छिनं च अछिंदिअ जं सामी भिमाईणं ॥ ७५० ॥ अणिसिहं सामन्नं गोट्ठिअभत्ताइ ददउ एगस्स । सट्ठा मूलाद्दहणे अज्झोअर होइ पक्खेवो ॥ ७५१ ॥ कम्मुद्देसिअचरिमतिग पूइअं मीस चरिमपाहुडिआ । अज्झोअर अविसोहिअ विसोहिकोडी भवे सेसा ||७५२ || उपायण संपायण निवत्तणमो अ हुंति एगट्ठा। आहारम्मिह पगया तीऍ य दोसा इमे होंति ॥ ७५३ ॥ धाई दूइ निमित्ते आजीव वणिमगे तिमिच्छा य । कोहे माणे माया लोहे अ हवंति दस एए ॥ ७५४ ॥ पुपिच्छासंभव विज्जा मंते अ चुण्ण जोगे अ । उप्पायणाऍ दोसा सोलसमे मूलकम्मे अ ॥ ७५५ ॥ धात्तणं करेई पिंडत्थाए तहेव दूद्दत्तं । तीआइनिमित्तं वा कहेइ जायाइ वाऽऽजीवे ॥ ७५६ ॥ जो जस कोई भत्तो वणेइ तं तप्पसंसणेणेव । आहारट्ठा कुणइ व मूढो मुहुमेअरतिगिच्छं ॥ ७५७ ॥ कोहष्फलसम्भावणपडुपण्णो होइ कोहपिंडो उ । गिहिणो कुणइऽभिमाणं मायाऍ दवावए तहय ॥ ७५८ ॥ अतिलोभा परिअडइ आहारट्ठा य संथवं दुविहं । कुणइ पउंजइ विज्जं मंतं चुण्णं च जोगं च ॥ ७५९ ॥ गब्र्भपरिसाडणाइ व पिंडत्थं कुणइ मूलकम्मं तु । साहुसमुत्था एए भणिआ उप्पायणादोसा || ७६० ।। For Private & Personal Use Only मिक्षा दोषाः ॥ २६९॥ elibrary.org

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