Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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सो चेव भावणाओ कयाइ उल्लसिअविरिअपरिणामो। पावइ सेढिं केवलमेवमओ णो पुणो मरई ॥१६०९॥ जइवि न पावइ सेढिं तहावि संवेगभावणाजुत्तो। णिअमेण सोगई लहइ तहय जिणधम्मबोहिं च ॥१६१०॥ जमिह सुहभावणाए अइसयभावेण भाविओ जीवो । जम्मंतरेऽवि जायइ एवंविहभाबजुत्तो अ॥१६११॥ एसेव बोहिलाभो सुहभावबलेण जो उ जीवस्स । पेचावि सुहो भावो वासिअतिल तिल्लनाएणं ॥१६१२॥ संलिहिऊणऽप्पाणं एवं पचप्पिणित्तु फलगाई । गुरुमाइए अ सम्म खमाविउ भावसुद्धीए ॥१६१३ ॥ उक्वूहिऊण सेसे पडिबद्धे तंमि तह विसेसेणं । धम्मे उज्जमिअवं संजोगा इह विओगंता ॥ १६१४ ॥ अथ वंदिऊण देवे जहाविहिं सेसए अ गुरुमाई। पच्चक्खाइत्तु तओ तयंतिगे सबमाहारं ॥१६१५॥ समभावम्मि ठिअप्पा सम्म सिद्धंतभणिअमग्गेण । गिरिकंदरं तु गंतुं पायवगमणं अह करेइ ॥ १६१६॥ सवत्थापडिबद्धो दंडाययमाइठाणमिह ठाउं । जावजीवं चिट्ठइ णिचिहो पायवसमाणो ॥१६१७ ॥ पढ मिल्लुगसंघयणे महाणुभावा करिति एवमिणं । एअंसुहभावचिअ णिचलपयकारणं परमं ॥ १६१८॥ णिवाघाइममेअंभणिअंइह पक्कमाणुसारेणं । संभवइ अ इअरंपिटु भणियमिणं वीअरागेहिं ॥ १६१९ ॥ सीहाईअभिभूओ पायवगमणं करेइ थिरचित्तो। आमि पहुप्पंते विआणिउं नवर गीअत्थो ॥ १६२० ॥ संघयणाभावाओ इअ एवं काउ जो उ असमत्थो । सो पुण थेवयरागं कालं संलेहणं काउं ॥१६२१॥ इंगिणिमरणं विहिणा भत्तपरिणं व सत्तिओ कुणइ । संवेगभाविअमणो काउं णीसल्लमप्पाणं ॥ १६२२॥
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