Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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मिच्छट्ठिीआव हुई इह होंति दवलिंगधरा । ता तेर्सि कह ण हुंती कि लिट्ठचित्ताइआ दोसा ॥ १६८८ ॥ एत्थ य आहारो खलु उवलक्खणमेव होइ णायहो । वोसिरइ त सवं उवउत्तो भावसलंपि ॥ १६८९ ।। roive अप्पाणं संवेगाइसयओ चरमकाले । मण्णइ विसुद्धभावो जो सो आराहओ भणिओ ।। १६९० ।। सत्थापडिबद्धो मज्झत्थो जीविए अ मरणे अ । चरणपरिणामजुत्तो जो सो आराहओ भणिओ ॥१६९१ ॥ सो भावओ चि खविडं तं पुचदुक्कडं कम्मं । जायइ विसुद्धजम्मो जोगो अ पुणोऽवि चरणस्स ॥ १६९२ ॥ एसो अ होइ तिविहो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो अ । लेसादारेण फुडं वोच्छामि विसेसमेएसिं ॥ १६९३ ॥ सुक्काए लेसाए उक्कोसगमंसगं परिणमित्ता । जो मरह सो हु णिअमा उक्कोसाराहओ होइ ॥ १६९४ ।। जे सेसा सुकाए अंसा जे आवि पम्हलेसाए । ते पुण जो सो भणिओ मज्झिमओ वी अरागेहिं ॥ १६९५ ॥ तेजलेसाए जे अंसा अह ते उ जे परिणमित्ता । मरह तओऽवि हु णेओ जहण्णमाराहओ इत्थ ।। १६९६ ॥ एसो पुन सम्मत्ताइभंगओ चेव होइ विष्णेओ । ण उ लेसामित्तेणं तं जमभवाणवि सुराणं ॥ १६९७ ॥ आराहगो अ जीवो तत्तो खविऊण दुक्कडं कम्मं । जायइ विसुद्धजम्मा जोगोऽवि पुणोवि चरणस्स ॥ १६९८ ॥ आराहिऊण एवं सत्तट्ठभवाणमारओ चेव । तेलुक्कमत्थअत्थो गच्छद्द सिद्धिं णिओगेणं ॥ १६९९ ॥ सवण्णुदरिसी निरुवमसुहसंगओ उ सो तत्थ । जम्माइदोसरहिओ चिट्ठद्द भयवं सया कालं ॥ १७०० ॥ एयाणि पंच वत्थु आराहिंता जहागमं सम्मं । तीअद्धाऍ अनंता सिद्धा जीवा धुअकिलेसा ॥ १७०१ ॥
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