Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव.
३ गणापुण्णा
॥ ३०३ ॥
Jain Educatio
तिहिं होइ णिमित्तं ती पडुप्पण्ण णागयं चैव । एत्थ सुभासुभभेअं अहिगरणेतर विभासाए । १६४७ ॥ या गारवा कुणमाणो आभिओगिअं बंधे। बीअं गारवरहिओ कुवइ आराह उच्चं च ।। १६४८ ॥ दारं ।। अणुबद्धग्गहोचिअ संतत्ततत्रो निमित्तमाएसी । णिक्किव निराणुकंपो आसुरिअं भावणं कुणइ ।। १६४९ ।। णिञ्चं विग्गहसीलो काऊण य णाणुतप्पई पच्छा । ण य खामिओ पसीअइ अवराहीणं दुविहंपि ॥ १६५० ॥ दारं ॥ आहारउबहिसिज्जामु जस्स भावो उ निचलंसत्तो । भावोबहओ कुणइ अ तवोवहाणं तयट्टाए । १६५१ ॥ तिविहं हवइ निमित्तं एकिकं छविहं तु विष्णेअं । अभिमाणाभिनिवेसा वागरि आलुरं कुणइ ॥ १६५२॥ दारं ॥ चकमणाईत्तो सुणिक्कियो धावराइसत्तेसुं । काउं व णाणुतप्पइ एरिसओ णिक्किवो होइ ।। १६५३ ॥ दारं ॥ जो उपर कंपतं दणण कंपए कढिणभावो । एसो उ णिरणुकंपो पण्णत्तो वीरागेहिं ॥ १६५४ || दारं ॥ उम्मग्गदेसओ मग्गदूसओ मग्गविप्पडीबत्ती । मोहेण य मोहित्ता सम्मोहं भावणं कुणइ ॥ १६५५ ॥ पडिदार ॥ नाणाइ अ दूसिंतो तश्विरीअं तु उद्दिसह मग्गं । उम्मग्गदेसओ एस होइ अहिओ अ सपरेसिं ॥। १६५६ ।। णाणाइ तिविहग्गं दूसइ जो जे अ मग्गपडिवण्णे । अवुहो जाईए खलु भण्णइ सो मग्गदूसोत्ति ।। १६५७॥दारं ॥ जो पुण तमेव मग्गं दूसिउं पंडिओ सतकाए । उम्मग्गं पडिवज्जइ विष्पडिवन्नेस मग्गस्स ॥ १६५८ ॥ दारं ।। तह २ उवहयमइओ मुज्झइ णाणचरणंतरालेसुं । इड्डीओ अ बहुविहा दहुं जत्तो तओ मोहो || १६५९ ॥ जो पुण मोहेइ परं सम्भावेगं च कइअवेणं वा । समयंतरम्मि सो पुण मोहित्ता घेप्पइ सऽणेणं ॥ १६६० ।।
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कान्दर्पि
क्याद्या भावनाः
॥ ३०३ ॥
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