Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 592
________________ श्रीपञ्चव. ३ गणागुण्णा बेदहिंसावत् न दुटोयं हिंसा ॥२८७॥ MAHASRAM सिअतंन सम्म वयणं इअरं सम्मवयणंति किंमाणं? अह लोगो चिअनेअंतहा अपाढा विगाणाय॥१२३४॥ अह पाढोऽभिमउच्चिअ विगाणमवि एत्थ थोवगाणं तु । इत्थंपि णप्पमाणं सवेसि विदंसणाओ उ ॥१२३५॥ किं तेसि दंसणेणं अप्पबहुत्तं जहित्थ तह चेव । सवत्थ समवसेअंणेवं वभिचारभावाओ॥ १२३६॥ अग्गाहारे बहुगा दीसंति दिआ तहा ण सुद्दत्तिण य तहसणओ चिअ सवत्थ इमं हवइ एवं ॥१२३७॥ ण य बहुगाणवि एत्थं अविगाणं सोहणंति निअमोऽअंगण य णो थेवाणं हु मूढेअरभावजोएण ॥१२३८ ॥ णय रागाइविरहिओ कोऽवि पमाया विसेसकारित्ति। सवेऽविअ पुरिसा रागाइजुआ उ परपक्खे ॥१२३९॥ एवं च वयणमित्ता धम्मादोसा ति मिच्छगाणंपि। घाएँताण दिअवरं पुरओ णणु चंडिकाईणं ॥ १२४०॥ ण य तेसिंपि ण वयणं एत्थ निमित्तंति जण सच्चे उ । तं तह घायंति सया अस्सुअतच्चोअणा वक्का ॥१२४१॥ अह तं ण एत्थ रूढं एअंपि ण तत्थ तुल्लमेवेयं । अह तं थेवमणुचिअं इमंमि एआरिसं तेसिं ॥१२४२॥ अह तं वेअंगं खलु न तंपि एमेव इत्थवि ण माणं । अह तत्थासवणमिणं सिएअमुच्छण्णसाहं तु ॥१२४३॥ णय तयणाओ चिअ तदुभयभावोत्ति तुल्लभणिईओ।अण्णावि कप्पणेवं साहम्मविहम्मओ दुहा॥१२४४॥ तम्हा ण वयणमित्तं सवत्थऽविसेसओ बुहजणेणं । एत्थ पवित्तिनिमित्तंति एअ दहव्वयं होइ ॥ १२४५॥ किं पुण विसिट्टगं चिअजं दिहिहाहि णो खलु विरुद्धं । तह संभवंस (त)रूवं विआरिउं सुद्धबुद्धीए॥१२४६॥ जह इह दवथयाओ भावावयकप्पगुणजुआ सेओ। पीडवगारो जिणभवणकारणादित्ति न विरुद्धं ॥१२४७॥ 4OSTOCTOCOGRAMMA 4600 ॥२८७॥ For Private Personel Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630