Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
श्रीपञ्चव.
३ गणाशुण्णा
॥२९१ ॥
सीसम्म पक्खिवंतो भण्णइ तं गुरुगुणेहिं बढाहि । एवं तु तिष्णि वारा उवविसह तओ गुरू पच्छा ॥ १३४४ ॥ सेसं जह सामइए दिसाह अणु जाणणाणिमित्तं तु । णवरं इह उस्सग्गो उवविसइ तओ गुरुसमीवे ॥ १३४५ ॥ दिति अतो वंदणयं सीसाइ तओ गुरुवि अणुसहिँ । दोपहवि करेइ तह जह अण्णोऽवि अ बुज्झई कोई ॥१३४६ ॥ उत्तममिअं पयं जिणवरेहिं लोगुत्तमेहिं पण्णत्तं । उत्तमफलसंजणयं उत्तमजणसेविअं लोए ।। १३४७ ॥ धण्णाण णिवेसिज्जइ घण्णा गच्छंति पारमेअस्स । गंतुं इमस्स पारं पारं वञ्चति दुक्खाणं ।। १३४८ ॥ संपाविण परमे णाणाई दुहितायणसमत्थे । भवभय भी आण दर्द ताणं जो कुणइ सो घण्णो ॥ १३४९ ॥ अण्णाणवाहिगहिआ जइवि न सम्मं इहाउरा होंति । तहवि पुण भावविजा तेसिं अवर्णिति तं वाहिं ॥ १३५० ॥ ताऽसि भावविज्जो भवदुक्खनिवीडिया तुहं एए । हंदि सरणं पवण्णा मोएअड्डा पयत्तेणं ॥ १३५१ ॥ मोइ अप्पमत्तो पर हिअकरणम्मि णिच्चमुजत्तो। भवसोक्खापडिबद्धो पडबद्धो मोक्खसोक्खम्मि ॥ १३५२ ॥ ता एरिसोचिअ तुमं तहवि अ भणिओऽसि समयणीईए। णिअयावत्था सरिसं भवया णिश्चपि कायां ।। १३५३ ।। तुहिंपि न एसो संसाराडविमहाकडिल्लमि । सिद्धिपुरसत्थवाहो जत्तेण खर्णपि मोत्तो ॥ १३५४ ॥ णय पडिकूलेअवं वयणं एअस्स नाणरासिस्स । एवं गिहवासचाओ जं सफलो होइ तुम्हाणं ॥ १३५५ ॥ हरा परमगुरूणं आणाभंगो निसेविओ होइ । विहला य होति तम्मी निअमा इहलोअपरलोआ ॥ १३५६ ॥ ता कुलवहुणाणंकज्जे निव्भन्थिएहिवि कर्हिचि । एअस्स पायमूलं आमरणंतं न मोत्तवं ॥ १३५७ ॥
Jain Educaticntional
For Private & Personal Use Only
गणानुवि धिः अनुशास्तिश्च
॥२९१॥
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630