Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 611
________________ DUCACAISASSANGALOKALOCAUTOCA* एएसिं सत्त वीही एत्तो चिअपायसोजओ भणिआ।कह नाम अणोमाणं? हविज गुणकारणं णिअमा ॥१४८०॥ अइसइणो अ जमेए चीहिविभागं अओ विआणति । ठाणाईएहिं धीरा समयपसिद्धेहि लिंगेहिं ॥१४८१ ॥ एसा समायारी एएसि समासओ समक्खाया। एत्तो खित्तादीअं ठिइमेएसिं तु वक्खामि ॥ १४८२॥ खित्ते कालचरित्ते तित्थे परिआएँ आगमे वेए। कप्पे लिंगे लेसा झाणे गणणा अभिगहा य ॥१४८३ ॥ पञ्चावण मुंडावण मणसाऽऽवणेऽवि से अणुग्घाया। कारण णिप्पडिकम्मे भत्तं पंथो अतइआए ॥१४८४ ॥ द्वारगाथाद्वयं खित्ते दुहेह मग्गण जम्मणओ चेव संतिभावे अ। जम्मणओ जहिं जाओ संतीभावो अजहिं कप्पो॥१४८५॥ जम्मणसंतीभावेसु होज सवासु कम्मभूमीसु।साहरणे पुण भइओ कम्मे व अकम्मभूमे वा॥१४८६॥दारं॥ उस्सप्पिणिए दोसुं जम्मणओ तिसु असंतिभावेणं । उस्सप्पिणि विवरीओ जम्मण ओ संतिभावेण ॥१४८७॥ णोसप्पिणिउस्सप्पिणि होइ पलिभागसो चउत्थम्मि।काले पलिभागेसु असंहरणे होइ सवेसुं॥१४८८॥दारं पढमे वा बीए वा पडिवज्जइ संजमम्मि जिणकप्पं । पुवपडिवन्नओ पुण अण्णयरे संजमे हुज्जा ॥ १४८९ ॥ मज्झिमतित्थयराणं पढमे पुरिमंतिमाण बीअम्मि । पच्छा विसुद्धजोगा अण्णयरं पावइ तयं तु ॥ १४९० ॥ तित्थेत्ति नियमओ चिय होइ स तित्थम्मि न पुण तदभावे। विगएऽणुप्पपणे वा जाईस रणाइएहिं तु ॥१४९१॥ LOCASC+C+CCASSAMASCAMSADANGACA Jain Educat ional For Private Personal Use Only inelibrary.org

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