Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 616
________________ श्रीपञ्चव. ३ गणाशुण्णा ॥ २९९ ॥ लग्गादिमुत्तरंते तो पडिवजित्तु खित्तबाहि ठिआ । गिण्हंति जं अगहिअं तत्थ य गंतूण आयरिओ ॥। १५४३ ॥ तेसिं तयं पयच्छ खित्तं एन्ताण तेसिमे दोसा । वन्दतमवंदते लोगम्मी होइ परिवाओ । १५४४ ॥ ण तरिज जई गंतु आयरिओ ताहे एइ सो चेव । अंतरपल्लीपडिवस भगामबहि अण्णवसही वा ॥। १५४५ ॥ तीए अ अपरिभोए ते वदंती ण वंदई सो उ । तं घित्तुमपडिबंधा ताऍं जहिच्छाएँ विहरति ॥। १५४६ ॥ जिणकप्पिआ व तहिअं किंचि तिगिच्छं तु ते उ न करिंति । पिडिकम्मसरीरा अवि अच्छिमलंपि णऽवर्णिति ।। १५४७ ॥ Jain Educatio national धेराणं णाणत्तं अतरंते अपिणंति गच्छस्स । तेऽवि असि फासुएणं करिंति सर्व्वं तु परिकम्मं ।। १५४८ ।। एक्किकपडिग्गहगा सप्पाउरणा हवंति थेरा उ । जे पुणऽमी जिणकप्पे भय तेसिं वत्थपायाई ॥। १५४९ ।। गणमाणओ जहण्णा तिष्णि गणा सयग्गसो अ उक्कोसा । पुरिसपमाणं पण्णरस सहस्ससो चेव उक्कोसो ॥। १५५० ॥ पडिवजमाणगा वा एक्कादि हविज्ज ऊणपक्खेवे । होंति जहण्णा एए सयग्गसो चेव उक्कोसा ।। १५५१ ॥ पडवनगाणवि उक्कोस जहण्णओ परीमाणं । कोडिपुहत्तं भणिअं होइ अहालंदिआणं तु ॥ १५५२ ॥ कयमित्थ पसंगेणं एसो अब्भुजओ इह बिहारो। संलेहणासमो खलु सुविसुद्धो होइ णायचो ॥ १५५३ ॥ पाएण चरमकाले जमेस भणिओ सयाणमणवजो । भयणाए अण्णया पुण गुरुकज्जाईहिं पडिबद्धा ॥ १५५४ ॥ For Private & Personal Use Only यथालन्दकल्पः ॥ २९९ ॥ ainelibrary.org

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