Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
सासु भावणासुं एसो उ ( य ) विही उ होइ ओहेणं । एत्थं चसद्दगहिओ तयंतरं चेव केहन्ति ॥ १४१० ॥ frontour seat गच्छे ठिअ कुणइ दुविह परिकम्मं । आहारोवहिमाइसु ताहे पडिबाई कप्पं ॥ १४११ ॥ तइआए अलेवार्ड पंचण्णयरीऍ भयह आहारं । दोण्हण्णयरीऍ पुणो उवहिं च अहागडं चैव ॥ १४१२ ॥ पाणिपडिग्गहपत्तो सचेल ( सचेलचेल ) भेएण वावि दुविहं तु । जो जहरूवो होही सो तह परिकम्मए अप्पं ॥ १४१३ ॥ दारं ॥
निम्माओ अ तहिं सो गच्छाई सवहाऽणुजाणित्ता । पुछोइआण सम्मं पच्छा उबवूहिओ विहिणा ॥ १४१४ ॥ खामेह तओ संघ सवालबुङ्कं जहोचिअं एवं । अञ्चतं संविग्गो पुवविरुद्धे विसेसेण ॥ १४१५ ॥
किंचि माणं भे वट्टि मए पुष्टिं । तं भे खामेमि अहं णिस्सल्लो णिक्कसाओन्ति ॥ १४१६ ॥ दवाई अणुकूले महाविभूईऍ अह जिणाईणं । अन्भासे पडिवज्जइ जिणकप्पं असइ वडरुक्खे || १४१७ ॥ दारं ॥ दाराशुवायमो इह सो पुण तइआए भावणासारं । काऊण तं विहाणं णिरविक्खो सङ्घहा वयइ ॥ १४१८ ॥ पक्खीपत्तुवगरणे गच्छारामा विणिग्गए तम्मि । चक्खुविसयं अईए अयंति आनंदिया साहू ॥ १४१९ ॥ आभोएवं खेत्तं णिवाघाएण मासणिवाहिं । गंतॄण तत्थ विहरइ एस विहारो समासेण ॥ १४२० ॥ एत्थ य सामायारी इमस्स जा होइ तं पवक्खामि । भयणाएँ दसविहाए गुरुवएसानुसारेण ॥ १४२१ ॥ इच्छा मिच्छ तहकार आवस्सि निसीहिया य आपुच्छा । पडिपुच्छ छंदण णिमंतणा य उवसंपया चेव १४२२
Jain Educationational
For Private & Personal Use Only
en 4
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630