Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 601
________________ Jain Educat णाणस्स होइ भागी थिरयरओ दंसणे चरित्ते अ । घण्णा आवकहाए गुरुकुलवासं ण मुंचति ॥ १३५८ ॥ एवं चिअ वयिणीणं अणुसट्ठि कुणइ एत्थ आयरिओ । तह अज्जचंदणमिगावईण साहेइ परमगुणे ।। १३५९ ।। भइ सलद्वीअपि हु पुवं तुह गुरुपरिक्खिआ आसि । लद्वी बत्थाईणं णिअमा एगंतनिद्दोसा ॥ १३६० ॥ इह तु आयतो जाओसि तुमंति एत्थ वत्थुम्मि । ता जह बहुगुणतरयं होइ इमं तह णु कायचं ॥ १३६१ ।। तु सपरिवारो आयरिअं तिप्पद क्खिणीकाउं । वंदइ पवेयणम्मी ओसरणे चैव य विभासा ।। १३६२ ।। अह समयविहाणं पालेइ तओ गणं तु मज्झत्थो । णिष्फाएइ अ अण्णे णिअगुणसरिसे पयत्तेणं ॥ १३६३ ॥ अणुओगगणाणुण्णा एवेसा वण्णिआ समासेणं । संलेहणत्ति दारं अओ परं किन्तइस्सामि ॥ १३६४ ॥ अणुओगगणागुण्णा कयाऍ तयणुपालणं विहिणा । जंता करेइ ( धीरो ) सम्मं जाऽऽवइओ चरमकालो उ ।। १३६५ ।। संलेहणा इहं खलु तवकिरिया जिणवरेहिं पण्णत्ता । जं तीऍ संलिहिज्जइ देहकसायाइ णिअमेणं ।। १३६६ ।। हे सवचि तव किरिआ जइवि एरिसी होइ । तहवि अ इमा विसिट्ठा धिप्पइ जा चरिमकालम्मि ॥ १३६७॥ परिवालिऊण विहिणा गणिमाइपयं जईणमिअमुचिअं । अब्भुजुओ विहारो अहवा अब्भुज्जुअं मरणं ।। १३६८ ।। सो अ विहारोव हु जहा संलेहणासमो चेव । ता ण विरुद्धो णेओ एत्थं संलेहणादारे ॥ १३६९ ॥ भणिऊण इमं पढमं लेसुद्देसेण पच्छओ वोच्छं । दाराणुवाइगं चित्र सम्मं अब्भुज्जुअं मरणं ॥ १३७० ॥ national For Private & Personal Use Only jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630