Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव.
३ गणाणुष्णा
॥ २८८ ॥
Jain Educat
यह धम्मजणणी जयणा धम्मस्स पालणी चेव । तबुद्दिकरी जयणा एगंतसुहावहा जयणा ॥ १२६२ ।। जयणाए वहमाणो जीवो सम्मत्तणाणचरणाणं । सद्भावोहा सेवणभावेणाराहओ भणिओ ॥ १२६३ ॥ एसा य होइ नियमा तयहिगदोसविणिवारणी जेण । तेण णिवित्तिपहाणा विन्ने बुद्धिमतेणं ॥ १२६४ ॥ सा इह परिणयजलदलविसुद्धरूवाओं होइ विष्णेआ । अत्थवओ महंतो सो सो धम्महेउत्ति ॥ १२६५ ॥ एतो चिr निद्दोसं सिप्पाइविहाणमो जिनिंदस्स । लेसेण सदोपि हु बहुदोसनिवारणत्तेणं ॥ १२६६ ॥ वरबोहिलाभओ सो सनुत्तमपुण्णसंजुओ भयवं । एगंतपर हिअरओ विसुद्धजोगो महासत्तो ॥ १२६७ ॥
बहुगुणं पयाणं तं णाऊणं तहेव देसेइ । ते रक्तस्स तओ जहोचिअं कह भवे दोसो ? ॥ १२६८ ॥ तत्थ पहाणो अंसो बहु दोसनिवारणेह जगगुरुणो । नागाइरक्खणे जह कहणदोसेऽवि सुहजोगो ॥ १२६९ ।। एव णिवित्तिपहाणा विष्णेआ तत्तओ अहिंसेअं । जयणावओ व ( उ ) विहिणा पूआइगयावि एमेव ॥ १२७० ॥ सिअ आउवगारो ण होइ इह कोइ पूयणिजाणं । कयकिच्चत्तणओ तह जायइ आसायणा चेवं ॥ १२७१ ॥ तअहिग निघत्तीए गुणतरं णत्थि एत्थ निअमेणं । इअ एअगया हिंसा सदोसमो होइ णायचा ॥ १२७२ ॥ उगाराभावेऽवि हु चिंतामणिजलणचंदणाईणं । विहिसेवगस्स जायइ तेहिंतो सो पसिद्धमिणं ॥ १२७३ ॥ इअ कय किचेहिंतो तभावे णत्थि कोइवि विरोहो । एतोचिअ ता (ते) पुज्जा का खलु आसायणा तीए १२७४ ॥ अगणिवित्तविहं भावेणाहिगरणा णिवित्तीओ । तदंसणसुहजोगा गुणंतरं तीऍ परिसुद्धं ॥
१॥
१२७५ ॥
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यतनातो निवृत्तिः फलं
॥ २८८ ॥
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