Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव.
वसतिः संसर्ग:
वणा
॥२६८॥
MALEGACCORDINAMASALA
वयणाओं जा पवित्ती परिसुद्धा एस एव सत्थोत्ति । अण्णेसि भावपीडाहेऊओ अण्णहाऽणत्यो ॥ ७१०॥ थीवजिअं विआणह इत्थीणं जत्थ ठाणरूघाई। सद्दा य ण सुवंती तावि अतेसिं न पिच्छति ॥ ७२०॥ ठाणं चिट्ठति जहिं मिहोकहाईहिं नवरमित्थीओ । ठाणे निअमा रूवं सिअ सद्दो जेण तो वजं ॥ ७२१॥ बंभवयस्स अगुत्ती लजाणासो अपीइबुड्डी अ । साहु तवो वणवासो निवारणं तित्थपरिहाणी ॥ ७२२॥ चंकमिअंठिअमुट्टिअंच विप्पेक्खिअंच सबिलासं । सिंगारे अ बहुविहे द8 भुत्तेअरे दोसा ॥ ७२३ ॥ जल्लमलपंकिआणवि लावन्नसिरी उ जहसि देहाणं। सामन्नेऽवि सुख्वा सयगुणिआ आसि गिहवासे ॥७२४॥ गीयाणि अ पढिआणि अहसिआणि य मंजुला य उल्लावा। भूसणसद्दे राहस्सिए असोऊण जेदोसा ॥७२॥ गंभीरमहुरफुडविसयगाहगा सुस्सरो सरो जेसिं । सज्झायस्स मणहरो गीअस्स णु केरिसो होइ?॥२६॥ एवं परोप्परं मोहणिजदुधिजयकम्मदोसेणं । होइ दढं पडिबंधो तम्हा तं वजए ठाणं ॥ ७२७॥ पसुपंडगेसुवि इहं मोहाणलदीविआण जं होइ। पायमसुहा पवित्ती पुवभवऽभासओ तह य॥७२८॥ तम्हा जहुत्तदोसेहिं वजिअं निम्ममो निरासंसो। वसहिं सेविज जई विवजए आणमाईणि ॥७२९॥ दारं ॥ वजिज्ज य संसग्गं पासस्थाईहिं पावमित्तेहिं । कुजा य अप्पमत्तो सुद्धचरित्तेहिं धीरेहिं ॥ ७३०॥ जो जारिसेण मित्तिं करेइ अचिरेण तारिसो होइ । कुसुमेहि सह वसंता तिलावि तग्गंधिया हुंति ॥ ७३१॥ सुचिरंपि अच्छमाणो वेरुलिओ कायमणिअउम्मीसो । न उवेइ कायभावं पाहण्णगुणेण निअएणं ॥७३२॥
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|॥२६८॥
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