Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 578
________________ श्रीपञ्चव. ३ गणाणुण्णा ॥ २८० ॥ Jain Education tional 1 आहेवं परिच्चत्तो भवया णिअगोऽत्थ कम्मवाओ उ । भणिअपगाराओ खलु सहाववायन्भुवगमेणं ॥। १०४६ ।। rous एते अम्हाणं कम्मवाय नो इट्ठो । ण य णो सहाववाओ सुअकेवलिया जओ भणिअं ॥ १०४७ ॥ आयरियसिद्धसेणेण सम्मईए पइट्ठिअजसेणं । दूसमणिसा दिवागरकप्पत्तणओ तदक्खेणं ॥ १०४८ ॥ कालो सहाय निअई पुछकथं पुरिसकारणेगंता । मिच्छत्तं ते चेव उ समासओ होंति सम्मत्तं ॥ १०४९ ॥ sa अकालाई अ समुदाएण साहगा भणिआ । जुजंति अ एमेव य सम्मं सङ्घस्स कज्जस्स ॥ १०५० ॥ नवकालाई हिंतो केवलएहिं तु जायए किंचि । इह मोग्गरंधणाइवि ता सबै समुदिया हेऊ ॥ १०५१ ॥ एत्थपिता सहावी इट्ठो एवं तओ ण दोसो णं । सो पुण इह विन्नेओ भवत्तं चैव चित्तं तु ॥ १०५२ ॥ एअं एगतेणं तुल्लं चिअ जइ उ सङ्घजीवाणं । ता मोक्खोऽवि हु तुल्लो पावइ कालादपूर्णं ॥ १०५३ ॥ णय तस्सेगंतेणं तहासहावस्स कम्ममाईहिं । जुज्जह फले विसेसोऽभवाणवि मोक्खसंगं च ॥ १०५४ ॥ कम्माइ त सभावत्तणंपि नो तस्स तरसभावत्ते । फलभेअसाहगं हंदि चिंतिभवं सुबुद्धीए ॥ १०५५ ॥ अह देसणाइ णेवंसहावओ (मो) जं तओ अभवाणं । नो खलु मोक्खपसंगो कहं तु अन्नत्थ तं एवं ? ॥ १०५६ । भवते सइ एवं तुले एअंमि कम्ममाईण । तमभवदेसणासममित्थं निअमेण दट्ठवं ॥ १०५७ ॥ अह एअहोस भयाण मयं सइ तस्स तस्सभावत्तं । एवं च अत्थओ णणु इट्ठो अ मईअपक्खोत्ति ॥ १०५८ ॥ जं तमणाइसरूवं एक्कंपि हु तं अणाइमं चैव । सो तस्स तहाभावोऽवि अप्पभूओत्ति काऊण ॥ १०५९ ॥ For Private & Personal Use Only तथाभव्य त्वसिद्धिः ॥ २८० ॥ inelibrary.org

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