Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 589
________________ KACADARASARAM एवं दिटुंतगुणा सज्झम्मिवि एत्थ होंति णायवा । ण हि साहम्माभावे पायं जं होइ दिढतो ॥ ११९५ ॥ चउकारणपरिसुद्धं कसछेअत्तावताडणाए अ । जं तं विसघाइरसायणाइगुणसंजु होइ ॥ ११९६ ॥ इअरम्मि कसाईआ विसिट्टलेसा तहेगसारत्तं । अवगारिणि अणुकंपा वसणे अइनिचलं चित्तं ॥ ११९७ ॥ तं कसिणगुणोवेअंहोइ सुवण्णं न सेसयं जुत्ती । णवि णामस्वमित्तेण एवं अगुणो हवइ साहू ॥११९८ ॥ जुत्तीसुवणयं पुण सुवण्णवणं तु जइवि कीरित्ता (जा)। णहु होइ तं सुवणं सेसेहिं गुणेहिऽसंतेहिं ॥ ११९९ ॥ जे इह सुत्ते भणिआ साहुगुणा तेहिं होइ सो साह। वपणेणं जच्चसुवणयं व संते गुणणिहिम्मि ॥१२००॥ जो साह गुणरहिओभिक्खं हिंडण होइ सो साह । वण्णेणं जुत्तिसुवणयं वसंते गुणणिहिम्मि ॥ १२०१॥ उद्दिकडं भुंजइ छक्कायपमहणो घरं कुणइ । पचक्खं च जलगए जो पिअइ कहण्णु सो साहू ? ॥ १२०२॥ अण्णे उ कसाईआ किर एए एत्थ होइ णायचा । एआहिँ परिक्खाहिं साहुपरिक्खेह कायवा ॥ १२०३ ॥ तम्हा जे इह सत्थे साहुगुणा तेहिं होइ सो साहू । अचंतसुपरिसुद्धोहिँ मोक्खसिद्धित्ति काऊणं ॥ १२०४॥ अलमित्थ पसंगेणं एवं खलु होइ भावचरणं तु । पडिबुझिस्संतऽण्णे भावजिअकम्मजोएणं ॥ १२०५ ॥ अपरिवडिअसुहचिंताभावज्जियकम्मपरिणईओ उ । एअस्स जाइ अंतं तओ स आराहणं लहइ ॥ १२०६॥ निच्छयणया जमेसा चरणपडिवत्तिसमयओपभिई । आमरणंतमजस्सं संजमपरिपालणं विहिणा ॥१२०७॥ BREARRRRRRRORISAA9 Jain Educat ona For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630