Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव.
३ गणा
णुष्णा
॥ २८३ ॥
पडिबुज्झिस्संति इहं दट्टण जिनिंदबिंबमकलंकं । अण्णेऽवि भवसत्ता काहिंति तओ परं धम्मं ॥ ११२७ ॥ ता अमेव वित्तं जमित्थमुवओगमेइ अणवरयं । इअ चिंताऽपरिवडिआ सासयवुड्डी उ मोक्खफला ॥। ११२८ ॥ णिफाइअ जयणाए जिणभवणं सुंदरं तहिं बिंबं । विहिकारिअमह विहिणा पट्ठविना असंभंतो ॥ ११२९ ॥ जिबिकारणविही काले संपूहऊण कत्तारं । विवोचिअमुल्लप्पणमणहस्स सुहेण भावेण ॥ ११३० ॥ तारिसयस्साभावे तस्सेव हिअत्थमुज्जओ णवरं । णिअमेइ बिंबमोल्लं जं उचिअं कालमासज्ज | ११३१ ॥ णिफण्णस्स य सम्मं तस्स पइट्ठावणे विही एसो । सहाणे सुहजोगे अभिवासणमुचिअपूजाए । १९३२ ॥ चिइवंदण थुइवुड्डी उस्सग्गो साहु सासणसुराए ।
यसरण अकाले ठवणा मंगलगपुद्दा उ ॥ ११३३ ।। दारगाहा ॥ सत्तीए संघ विसेस आउ बहुगुणा एसा । जं एस सुए भणिओ तित्थयराणंतरो संघो ॥ १९३४ ॥ गुणसमुदाओ संघो पवयण तित्थंति होंति एगट्ठा। तित्थयरोऽविअ एअं णमए गुरुभावओ चेव ॥ ११३५ ॥ पुचि अरहया पूअपूआ य विणयकम्मं च । कयकिञ्चोऽवि जह कह कहेइ णमए तहा तिथं ॥। ११३३ ।। अम्मि पूइअम्मी णत्थि तयं जं न पूइअं होइ । भुवणेऽवि पूयणिज्जं न गुणट्ठाणं तओ अण्णं ॥ ११३७ ॥ तप्पू आपरिणामो हंदि महाविसयमो मुणेअघो । तद्देसपूअओऽवि हु देवयपूआइणाएणं ॥ १९३८ ॥ तत्तो अपइदिणं सो करिज्ज पूअं जिणिंदठवणाए । विहवाणुसारगुरुई काले निअयं विहाणेणं ॥ ११३९ ।।
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जिनभवनकृतो भूमिशुद्ध्यादि
॥ २८३ ॥
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