Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 582
________________ श्रीपञ्चव. ३ गणागुण्णा ॥ २८२ ॥ Jain Educatio एवं चिअ देहवहं उवयारे वावि पुण्णपावाहूं । इहूरा घडाइभंगाइनायओ नेव जुजंति ॥ ११०१ ॥ तय अम्मि अनिअमा तन्नासे तस्स पावई नासो । इअ परलो आभावा बंधाईणं अभावाओ ।। ११०२ ॥ देहेणं देहम्मि अ उवघायाणुग्गहेहिं बंधाई । ण पुण अमुत्तोऽमुत्तस्स अप्पणी कुणइ किंचिदवि ॥ ११०३ ॥ अकरितो अ ण बज्झइ अइप्यसंगा सदेव बंधाओ । तम्हा भेआभेए जीवसरीराण बंधाई ॥ ११०४ ॥ मोक्खोऽवि अबद्धस्सा तयभावे स कह कीस वा ण सया ? । किंवा ऊहि तहा कहं च सो होइ पुरिसत्थो ? ।। ११०५ ।। तन्हा बद्धस्स तओ बंधोऽवि अणाइमं पवाहेण । इहरा तयभावम्मी पुवं चिअ मोक्खसंसिद्धी ॥ ११०६ ॥ अणुभूअवत्तमाणो बंधो कयगोत्तिणाइमं कह णु ? । जह उ अईओ कालो तहाविहो तह पवाहेण ॥। ११०७ ॥ दीसह कम्मावचओ संभवई तेण तस्स विगमोऽवि । कणगमलस्स व तेण उ मुको मुक्कोत्ति नायवो ॥। ११०८ ॥ एमाइभाववाओ जत्थ तओ होइ तावसुद्धोत्ति । एस उवाएओ खलु बुद्धिमया धीरपुरिसेण ॥। ११०९ ॥ एअमिहमुत्तमसुअं आईसद्दाओ थयपरिण्णाई । वणिजइ जीए थउ दुविहोऽवि गुणाइभावेण ॥ १११० ॥ वे भावे अथओ दवे भावे अ ( भावथय ) रागओ विहिणा । जिणभवणाइविहाणं भावथओ संजमो सुद्धो ॥ ११११ जिणभवणकारणविही सुद्धा भूमी दलं च कट्ठाई । भिअगाणऽतिसंघाणं सासयवुड्डी समासेनं ॥ १११२ ॥ national For Private & Personal Use Only नित्यानि - त्यभेदाभे दविचारः ॥ २८२ ॥ jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630