Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव.
३ गणाणुष्णा
॥ २७९ ॥
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सिस्से वा णाऊ जोग्गयरे केइ दिट्टिवायाई । तत्तो वा निजूढं सेसं ते चैव विअरंति ॥ १०१९ ॥ सम्मं धम्मविसेसो जहिअं कसछेअतावपरिसुद्धो । वणिज्जइ निजूढं एवंविहमुत्तमसुआइ ॥ १०२० ॥ पाणवहाईआणं पावट्टाणाण जो उ पडिसेहो । झाणज्झयणाईणं जो अ विही एस धम्मको । १०२१ ॥ बझाहाणं जेण न बाहिज्जई तयं नियमा । संभवइ अ परिसुद्धं सो उण धम्मम्मि छेउन्ति ॥ १०२२ ॥ जीवाभाववाओ बंधाइपसाहगो इहं तावो । एएहिं सुपरिसुद्धो धम्मो धम्मत्तणमुवेइ ॥ १०२३ ॥ एएहिं जो न सुद्धो अन्नपरंमि उ ण मुटु निवडिओ । सो तारिसओ धम्मो नियमेण फले विसंवयइ ॥ १०२४ ॥ एसो उ उत्तमो जं पुरिसत्थो इत्थ वंचिओ नियमा । वंचिज्जइ सयलेसुं कल्लाणेसुं न संदेहो ॥। १०२५ ॥ एत्थ य अवचिए ण हि वंचिज्जइ तेसु जेण तेणेसो । सम्मं परिक्खि अहो बुहेहिमइनिउणदिट्ठीए ॥। १०२६ ।। कल्लाणाणि अ इहई जाई संपत्तमोक्खबीअस्स । सुरमणुएस सुहाई नियमेण सुहाणुबंधीणि ॥। १०२७ ॥ सम्मं च मोक्खबीअं तं पुण भूअत्थसहहणरुवं । पसमाइलिंगगम्मं सुहायपरिणामरूवं तु ।। १०२८ ॥ तम्मि सह सुहं अं अकलुसभावस्स हंदि जीवस्स । अणुबंधो अ सुहो खलु धम्मपवत्तस्स भावेण ॥ १०२९ ॥ भूअत्थसहाणं च होइ भूअत्थवायगा पायं । सुअधम्माओ सो पुण पहीणदोसस्स वयणं तु ॥ १०३० ॥ जम्हा अपोरिसेअं नेगतेणेह विज्जई वयणं । भूअत्थवायगं न य सर्व अपही दोसस्स ।। १०३१ ॥ आह तओsविण नियमा जायइ भूअत्थसद्दहाणं तु । जं सोऽवि पत्तपुत्रो अनंतसो सङ्घजीवेहिं ।। १०३२ ॥
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वाचनावि
धिः कषच्छेदता
पाश्च
॥ २७९ ॥
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