Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 566
________________ श्रीपञ्चव. ३ वयठवणा ॥ २७४ ॥ तस्सेव यानिलानलभुअगेहिंतोऽवि पासओ सम्मं । पगई दुग्गिज्झस्स व मणस्स दुग्गिज्झयं चेत्र ॥ ८८३ ॥ जच्चाइगुणविभूसिअवरधवणिरविक्खयं च भाविज्जा । तस्सेव य अइनिअडीपहाणयं चेव पावस्स ॥ ८८४ ॥ चिंतेइ कज्जमन्नं अण्णं संठवइ भासए अन्नं । पाढवइ कुणइमन्नं मायग्गामो निअडिसारो ॥ ८८५ ॥ तस्सेव य झाएजा भुज्जो पयईअ णीयगामित्तं । सइसोक्खमोक्खपावगसज्झाणरिवृत्तणं तहय ॥ ८८६ ॥ अच्चुग्गपरम संतावजणगनिरयाणलेगउत्तं । तत्तो अविरत्ताणं इहेव पसमाइला भगुणं ॥ ८८७ ॥ पर लोगम्मि असइ तद्विरागबीजाओं चेव भाविजा । सारीरमाणसाणेगदुक्खमोक्खं सुसोक्खं च ॥ ८८८ ॥ भावे माणस इमं गाढं संवेगसुद्धजोगस्स । खिज्जइ किलिङकम्मं चरणविसुद्धी तओ निअमा ॥ ८८९ ॥ जो जेणं बाहिर दोसेणं चेयणाइविसएणं । सो खलु तस्स विवक्खं तविसयं चेव भाविज्जा ।। ८९० ॥ अमिराभावे तरसेव उवजणाइसंकेसं । भाविज धम्महेउं अभावमो तह य तस्सेव ॥ ८९१ ॥ दोसम्म असइ मित्तिं माइताई अ सहजीवाणं । मोहम्मि जहाथूरं वत्थुसहावं सुपणिहाणं ॥ ८९२ ॥ एत्थ उ वयाहिगारापायं तेसि पडिवक्खमो विसया । थाणं च इत्थिआओ तेसिंति विसेस उचएसो ॥ ८९३ ॥ जह चेव असुहपरिणामओ य दढ बंधओ हवइ जीवो । तह चैव विवक्खंमी खवओ कम्माण विन्नेओ ।। ८९४ ।। दारं अप्पडिबद्धो अ सया गुरुवएसेण सङ्घभावेसु । मासाहविहारेणं विहरिज्ज जहोचिअं नियमा ।। ८९५ ॥ Jain Education national For Private & Personal Use Only अर्थपदविचारणा भावना च ॥ २७४ ॥ ainelibrary.org

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