Book Title: Panchsangraha Tika Part_1
Author(s): Chandrashi Mahattar, Malaygiri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 308
________________ टीका रिग्रहाश्रः. घातिप्रकृतीनां ध्रुवोदया पाह-नाणंतरायेत्यादि ' ज्ञानांतरायदशकं, ज्ञानाव- नागर रणपंचकमंतरायपंचकं चेत्यर्षः. दर्शनचतुष्कं चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनावरणचतुष्टयं, मि. यस च्यात्वं चेति पंचदश. सर्वसंख्यया सप्तविंशतिप्रकृतयो ध्रुवोदया नवंति. शेषास्तु पंचनवति संख्याः प्रकृतयोऽध्रुवोदयाः, ताश्च सुगमा इति नोपदयं ते. अश्र का ध्रुवोदया प्रकृतिः किं गुणस्थानकं यावत् ध्रुवोदयत्वेन प्राप्यते ? नुच्यते-मिथ्यात्वं मिथ्यादृष्टिगुणस्थानकं यावर त्. ज्ञानावरणपंचकदर्शनावरणचतुष्टयांतरायपंचकानि कीणमोदचरमसमयं, अगुरुलध्वादयो नामध्रुवोदया द्वादश प्रकृतयः सयोगिकेवलिचरमसमयं ॥ १६ ॥ संप्रति सर्वघातिप्रकृती. रुपदिशाति ॥मूलम्॥-केवलियनाणदसण-आवरणं बारसाश्मकसाया ॥ मित्तं निदान। इय वीस * सबधाइन ॥१७॥ व्याख्या-सर्वघातिन्य नक्तशब्दाः प्रकृतय इति एवममुना प्रकारेण विंश तिर्विशतिसंख्या नवंति. तद्यथा-कैवलिकज्ञानदर्शनावरणमिति केवलज्ञानावरणं केवलदर्शनावरणं. तश्रा आदिमा आद्या अनंतानुबंध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणरूपा हादश कषायाः, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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