Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
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अढारे पापस्था
नक
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हणाव्यो होय,हणतां प्रत्ये अनुमोद्यो होय,ते सव्वे हु मने वचने कायाए करी तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
अढारे पापस्थानक आलोऊं,- पहेले प्राणातिपात', बीजे मृपावाद, तीजे अदत्तादान'. चोथे मैथुन', पांचमे परिग्रह', छठे क्रोध, सातमे मान, आठमे माया', नवमे लोभ', दशमे राग", इग्यारमे द्वेष'', बारमे कलह, तेरमे अायाख्यान'३, चउदमे पेशून्य'', पंदरमे रति, अरति", सोलमे पर परिवाद६. सत्तरमे माया मृपावाद", अढारमे मिथ्यात्वशल्य'. ए अढारे पर पापस्थानक माहे माहरे जीवे जे कोइ पाप सेव्यु होय, सेवराव्युं होय, सेवतां प्रत्ये अनुमोदाई
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१ अन्य जीवोंके प्राणोंका नाश (हिंसा)। २ झूट बोलना । ३ कीसीकी कोइभी चीज मालिकके विना दिये लेना। ४ वी आदिसे विषय सेवन । , वंदित्तुकी १८मी' गाथामें बताया हुआ धनादि नव प्रकार का वाह्य. और मिथ्यात्व 1 स्त्रीवेद आदि ३. हास्य आदि इ. क्रोध आदि ४. ये चउंदै प्रकारका अभ्यंतर परिग्रह. नाम वस्तुको सवतरह ग्रहण करना । ६ दुसरेके उपर आकरे स्वभावसे मुख दि अवयवोंको तपाना (चिडजाना)। ७ मिली न मिली वस्तुका अहंकार । ८ गुप्तपणे अपना मतलब
साधनेकी इच्छा । ९ धनादि संपत्ति भेली करके संग्रह कर रखनेकी इच्छा । १० पौद्गलिक (जड) वस्तुमें प्रीति । 11 खुदको अनिष्ट पदार्थों में अप्रीति । १२ दूसरेसे स लडाइ -- ढंटा करना। १३ बिना देखा विना सुणा उँटा कलंक दुसरे उपर देना । १४ चगली खाना-परके दोष दूसरेको कहना । १५सख दःखमें राजीनाराजीका होना।
१६ गुणी या निगुणी जीवकी निंदा करनी । १७ दूसरेको ठगनेके लिये कपटसे झूट बोलना । १८ द्रव्यसे कुदेव कुगुरु कुधर्म माननेकी इच्छा और निश्चयसे आत्मस्वरूके अनुभवको विन्नकर्ता आम परिणामरूप जो मिव्यात्व यो ही शल्य (दुःस)।
॥३५॥
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