Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
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११२
पंचज्ञान
"चैत्य • अष्टमिका चैत्य०
नवपद
शांतिनाथ चै०
११४
११५
पार्श्वनाथ चैत्य० पार्श्वनाथ
रतन ११६
विभो ! भोगे, रलं मंत्रैरलं गजैः । कृतं कल्पणा नाथ !, शासनं तेऽस्तु मेऽनिशं 11
पंचम जिनवरने नपुं. पंच महाव्रत धार। पंच ज्ञान सहु जिन कह्यां, पंचमी गति दातार |१| मतिश्रुतावधि मनपर्यत्र, पंचम केवलज्ञान । मति अठ्ठावीस श्रुत चउदे, बीस असंख्यावधि ज्ञान |२| मनपर्यत्र दोय भेदथी ए. केवल एक प्रकार पंचमी तिथि आरावतां पां जिन सुख सार |३| चवीस जिनवर नमुं अष्टमी गति दातार । अष्टमी तिथि आराधिये, लहिये भवनो पार |१| ऋषभादिक केइ जिननां ए, कल्याणक गुणखाण । अष्टमी तिथि तप आदरो, अष्ट कर्म करे हाण |२| पत्रयण माता आउने ए, पालीजे पवित्त । आठ पहोर पौषव करी, धरिये जिन मुख चित्त ॥३॥ अतः सिद्धाचार्यो, पाध्यायाः सर्वसाधवः । दर्शन ज्ञानचारित्र, तपांसीति पदावली |१| एतैर्नवपदैः सिद्धं सिद्धचक्रं प्रकीर्त्तितं । तदष्टदल पद्मस्थं, ध्येयं ध्यान परायणैः |२| इयं नवपयसिद्धं लद्धिविज्जासमिद्धं, पर्याडिअसर वग्गं हितिरेहासमरगं । दिसिवइसुरसारं खोणिपीढावयारं, तिजयविजय यक्कं सिद्धचक्कं नमामि ॥३१ विपुलनिर्मलकीर्त्तिमरान्वितो, जयति निर्जरनाथनमस्कृतः । लघुविनिर्जितमोहराधिरो, जगति यः प्रभुशांतिजिनाधिपः | ११ विहितशांतसुबारस मज्जनं, निखिल दुर्जय दोष विर्जितं । परमपुण्यवतां भजनीयतां, गतमनंतगुणैः सहितं सताम् । २। तपचिरात्मजमीशमधीश्वरं भविक पद्मविवोध दिनेश्वरं । महिमान भजामि जगत्रये, वरमनुत्तरसिद्धिसमृद्धये । ३ । सकलकुशलवल्ली पुष्करावर्त्तमेघो, दुरिततिमिरभानुः कल्पवृक्षोपमानः । भवजलनिधिपोतः सर्वसंपत्तिहेतुः, स भवतु सततं वः श्रेयसे पार्श्वनाथः ॥ जय तिहुअण आदि गाया २ अंतकी गाथा ? अथवा कल्याण कमला गेहं नीलदेहं महाश्रियं । नवखंडाभिधं पार्श्व, सहाध्यायामि मानसे । १ । प्रभु पार्श्व देख हुलसाया, मैं नगर नाकोडे आया। तुमे नाम अनेक प्रभु ! धारे, मक्सी गोडि पास प्रभु प्यारे रे, मैं नगर०, प्रभु पार्श्व ० |१| हस्ति देवगति पद पाया, कलिकुंड तीर्थ थपवाया । जगन्नाथ जीरावली राया. शंखेश्वर नाम धराया रे, मैं नगर, प्रभु पार्श्व० |२| जरासंधकी जरा निवारी, हुए कृष्ण जय जयकारी थंभणपुर स्वामी नामी, भविजन मनके विसरामि रे, मैं नगर०, प्रभु
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