Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
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खाण लालरे, वीर० ॥३॥ अनंत पुण्य कर्म योगथी, तीर्थंकर पद धार लालरे । गोत्र करम उदये प्रभु, ब्राह्मणी कूखे अवतार लालरे, वीर० ।। शक्र स्तवे पुरुषोत्तम, तेथी ते प्रभु गर्भ उच्च लालरे। गर्भ नीच अपसद अधम कहे, प्रभु निंदाए होवे नीच लालरे, वीर० ।। गर्भाधान कल्याण श्रेय छे, पंचाशक मझार लालरे । न गर्भ नीच अकल्याण कडं, तो किम विरुद्ध उच्चार लालरे, वीर० ।। देवानंदा कूखथी त्रिशला कूखे, गर्भधारण श्रेयरूप लालरे । इंद्रे ते निश्चय मानीयुं, न मार्नु अकल्याणरूप लालरे, वीर शुं मार्नु कल्याण फल माता कद्यु, होशे तीर्थंकर तुम पूत लालरे। विष कुल नीच निंद्य दाखवी, न ते अकल्याणक भूत लालरे, वीर० । कन्याग ते श्रेय भांखियुं, श्रेय ने कल्याग फल जाण लालरे। नीच अवरणवादे वीरन, मानें तो मारूं अकल्याण लालरे, वीर० ।। जे दिन विष कुले आविया,माने अच्छे5 शुभ कल्याण लालरे। ते क्षत्रिकुले वीर किम होवे,नीच अशुभ अकल्याण लालरे, वीर०।१०। 'कल्य' ते शुभ समृद्धि कही, 'अण'ते आप 'कल्याण' लालरे। ते विष सिद्धारथ कुले थयुं वलि विप्र मोक्ष कल्याण लालरे, वीर०।११। च्यवन इंद्रे न जाण्युं वीरनु, तो ओच्छव किहां मंडाग लालरे। मोक्षे अंधारूं ठाणांगमां, पण मानीजे कल्याण लालरे, वीर०।१२। जिनचंद्र वीर वियोगथो. मोहथी थाय दुःख शोक लालरे।देवानंदा गौतमने जिम,लेजो कल्याण मोक्ष एक लालरे, वीर०॥३॥
सोलम जिनवर शांतिजिन,सेवो सिरनामी । कंचनवरण शरीर कांति,अतिशय अभिरामी। अचिरा अंगज विश्वसेन,नरपति कुलचंद । मृगलंछन धर पदकमल, सेवे सुरनर छंद।। जगमा अमृत जेहवी ए,जास अखंडित आण। एक मने आराधता,लहिये कोडि'कल्याण'
सीमंधरं जिनाधीश, नम्राखंडलमंडलं । शुभ्रज्ञानरमाकेलि, मंदिरं नौमि सादरं ॥१॥ ये त्वां पश्यति ते धन्या, स्ते श्वाध्याः पूजयंति ये। ते दक्षा ये निपेवंते, नराः सीमंधरं प्रभो ! ।२। लोककोकावली हेलि, राधिव्याधितमोहर !। विश्वकल्पितकल्पद्रो.. F११७॥ चिरं जीयाज्जिनोत्तम ! ।। संसारभीमकांतारे, ऽनंगरागादितस्करैः। भ्रमंतं पीड्यमानं मां, रक्ष रक्ष दयोदधे!।४। किं वित्तैः किं
१०९ शांतिजि न चैत्य
सीमंधर
जिन चैत्य वंदन ११०
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