Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
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पांच आश्रवोंकुं,सवतरह जाणनेवाले। तीन गुप्तिवाले,छ जीव निकायमें,अच्छि दयावाले । पांच इंद्रियों कुं,जीतने वाले,धीरजवाले। निग्रंथ[साधु], |
पंचासव परिणाया। ति गुत्ता, 'छसु, संजया॥ पंच, निग्गहणा, धीरा। 'निग्गंथा, सरल,देखनेवाले होतेहैं ] ॥११॥ आतापना लेतेहैं, उनालेमें। सियाले में,खोले शरीरे रहे । वरसालेमें,शरीर संकोचे हुए । संयमी[साधु]. 15
नज्जु, दंसिणो॥११॥'आयावयंति, गिम्हेसु । हेमंतेसु,अवानडा। वासासु, पडिसंलीणा। संजया, ज्ञानादिमें भले उद्यमवाले रहे ।१२। बावीस परीपह रूप,रिपु[शत्रु के दमनेवाले। त्यागाहै मोह जिणोंने,जीति इंद्रियांवाले ऐसे । सर्व दुःखोंकुं,
सुसमाहिया ॥१२॥ परीसह, रिन दंता। धूअमोहा, "जिइंदिया॥ सव्वदुरुख, नाश करनेके वास्ते । उद्यम करते हैं,मोटे ऋषि साधु-साध्वी]।१३।दुष्कर आचारका,पालन करके । दुःखे सहसकेवैसे, सहन करके, फेर । है 'पहीणऽछा । पक्कमंति, महेसिणो ॥१३॥ 'दुक्कराइं, 'करित्ताणं । 'दुस्सहाई, "सहेत्तु, य॥ कितनेक,यहाँ[संसारमें],देवलोकोंमें [जातेहैं]। कितनेक, सिद्धहोते हैं, कर्मरजरहित हुए ।१४। खपाके, [बाकी रहे]पूर्व कर्मोकुं । संजम करके,
"के, इत्थ, देवलोएसु। केइ, 'सिझंति, नीरया ॥१४॥खवित्ता, 'पुव्वकम्माइं। 'संजमेण, में तप करके, और । सिद्धि[मोक्षमार्गकुं, प्राप्तहए । [स्व-परके रक्षक,सर्वप्रकारे, निर्वाण[मोक्ष]जाते हैं ।१५। ऐसा,बोलताहूं। तवेण, य॥ सिद्धिमग्ग, मणुप्पत्ता। 'ताइणो, 'परि, निव्वुडे ॥१५॥ त्ति, बेमि । १ हिंसा झूट चोरी आदि । २ उपर कहे बावन अनाचारोंका त्यागरूप । ३ आतापना लेना आदि ।
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