Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat, 
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak

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Page 168
________________ (दोही) राग दोसे (राग-द्रेपकुं), 'दुन्नि (दोनों) अ(और) झाणाइं (ध्यानोंकुं) अट्ट-रुद्दाइं (आर्त-रौद्र)। परिवजंतो गुत्तो, रख्खामि ‘महव्वए पंच।२३। 'दुविहं(दो प्रकारके) चरित्त धम्म(चारित्र धर्मकुं), दुन्नि अ "झाणाई धम्म-सुक्काइं (धर्म-शुक)। नवसंपन्नो जुत्तो, रख्खामि महव्वए पंच।२४। किण्हा (कृष्ण) नीला (नील) कान (कापोत ये),तिन्नि (तीनों) अ (फेर) लेसाओ (लेश्यायें) अप्पसत्थाओ [अप्रशस्त खराब] | परिवजंतोगुत्तो, रख्खामि महब्बए पंच ।२५। तेन तेजो] पम्हा[पद्मा] सुक्का [शुक्ला ये], तिन्नि अलेसाओ सुप्पसत्थाओ [सुप्रशस्त-अच्छो]। नवसंपन्नो जुत्तो, रख्खामि महव्वए पंच ।२६। मणसा [पनसे] मण [मनके] सच्च सत्य-संयमका विऊ (जाननेवाला मैं) वाया (वचन) सच्चेण (संयमसे) करण (कायाके) सच्चेण । तिविहेणवि (तीनोंही प्रकारसे) सच्चविऊ, रख्खामि महव्वए पंच ।२७॥ चत्तारि (चार) य (फेर)दुह सिज्जा (दुःखशय्या), है चनरो (चार) सन्ना (संज्ञा) तहा (तथा) कसाया (कषाय क्रोधादि)य। परिवजंतो गुत्तो,रख्खामि महव्वर पंच ।२८। चत्तारि य सुहसिज्जा (सुखशय्या),चनविहं (चार प्रकारके) संवरं (संवरकुं) समाहिं [समाधिकुं] प्र555555555555फफफफफ5559 he ॥५६॥ 卐 देशविरति सर्वविरतिभा । जिनमें अश्रवा कामभोगकी बांछा परकेलाभकी इच्छा स्नानकी अभिलाषा । आहार भय मैथुन परिग्रह । ४ जिनधर्ममें श्रद्धा विषय निवृत्ति पोतेके 卐 लाभमें संतोष स्नानकी अनिच्छा। ५ मन वचन काया तथा उपकरजका संघर नाम कर्मबंधनके मागको रोकना ! ६ ज्ञान दर्शन चारित्र तप, या विनय श्रुत तपः आचार। For Personal Private Use Only JainEducation inter

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