Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat, 
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak

View full book text
Previous | Next

Page 167
________________ h+++155555555555555551 वयमणुरख्खे. विरयामो मुसावायाओ।१५। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो ठिओ समण धम्मे । तइयं वयमणुरख्खे, विरयामो अदिन्नादाणाओ।१६। आलय विहार समिओ, जुत्तो गुत्तो # ठिओ समणधम्मे। चनत्थं वयमणुरख्खे, विरयामो मेहुणाओ।१७आलय विहार समिओ. जुत्तो गुत्तो ठिओ समणधम्मे। पंचमंवयमणुरख्खे,विरयामो परिग्गहाओ।१८। आलय विहार समिओ, # जुत्तो गुत्तो ठिओ समणधम्मे। छठं वयमणुरख्खे, विरयामो राईभोअणाओ।१९। आलय विहार # समिओ, जुत्तो गुत्तो 'ठिओ समणधम्मे। 'तिविहेण (त्रिविध करके) अप्पमत्तो (अप्रमत्त हुआ), रख्खामि (रख(पाल)ताहूं) महव्वए (महाव्रतोंकु) पंच (पांचों) ।२०। सावज्जजोग (सावद्य योगकुं) । मे 'गं (एक), मिच्छत्तं # (मिथ्यात्वकुं) एग (एक) मे व (ऐसेही-एक) अन्नाणं (अज्ञानकुं)। परिवजंतो(सवतरह वरजता हुआ) गुत्तो (गुप्त हुआ) "रख्खामि महव्वए पंच।२१। अणवज्जजोग (अनवद्य-पापरहित-योगकुं) मे गं, सम्मत्तं (सम्यक्त्वकुं) एगमेव "नाणं (ज्ञानकुं) तु (निश्चय) । 'नवसंपन्नो(पामा हुआ)जुत्तो(युक्त हुआ)."रख्खामि "महव्वए पंच।२२। दो चेव 1 पापसहित मन-वचन-कायाके व्यापार। २ शुद्धदेव-गुरु-धर्मके उपर मनके विपरीत परिणाम । 1512५॥ Jain Education Inderational For Personal Private Use Only ininelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192