Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat, 
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak

View full book text
Previous | Next

Page 180
________________ १३२ पाक्षि कादि खामणे 555555 पालते हैं', पूरते हैं, तीरते हैं, कीर्ततेहैं', अच्छीतरह, आज्ञासे, आराधते हैं, मैं, और नहीं, आराधताहूं, उसका मिथ्याहो मेरे, दुष्कृत | पालंति, पूरंति, तीरंति, किट्टंति, सम्मं, आणाए, आराहंति, "अहं च, "न, आराहेमि, तस्स मिच्छामि, दुक्कडं ॥ श्रुतदेवता, भगवती (पूज्या ) । ज्ञानावरणीय, कर्मके, समुदायकुं । उनके खपाओ, निरंतर । जिन्होंकी, श्रुत सागर में, भक्ति है ॥१॥ "सुअदेवया, 'भगवई । नाणावरणीय, कम्म, संघायं ॥ तेसिं, खवेन, सययं । 'जेसि, सुअसायरे, भत्ती ॥१ इच्छताहूं, क्षमाश्रमण (गुरो) !, प्रियहै, और, मेरेकुं, जो, आक्का, हर्षित हुए, संतुष्टहुए, अल्प (नहीं) रोगवाले, नहीं भग्न हुए, (संयम) योगवाले, इच्छामि, खमासमणो !, 'पियं, च, मे, जं, भे, हठ्ठाणं, तुहाणं, अप्पायंकाणं, अभग्ग, जोगाणं, अच्छे शीलवाले, अच्छे व्रतवाले, आचार्य उपाध्याय सहित, ज्ञानसे, दर्शनसे, चारित्रसे, तपस्यासे, आत्माकुं, भागते हुए, सुसीलाणं, सुव्वाणं, सायरियनबज्झायाणं, नाणेणं, दंसणेणं, चरित्तेणं, तवसा, अम्पाणं, भावेमाणाणं बहुत शुभ (मुख) से, हे भगवन् !, दिवस (दिन), पौषध (पर्व) रूप, पक्ष, [ चोमासा, संवत्सर (वर्ष) ], बीता है, अन्य ( पक्षादि), और आपके, "बहुसुभेण, भे! "दिवसो, पोस हो, पख्खो, (चनम्मासो, संवच्छरो), वडक्कंतो, "अन्नो, य, भे, कल्याणसे, पर्युपस्थित (प्राप्त हुआ है, ( वास्ते) शिरसे, मनसे, मस्तक (नमा) करके, वांदता हूँ |१| गुरु कहे- तुमारे, साथ । "कल्लाणेणं, पज्जुवडिओ, सिरसा, मणसा, मत्थएण, वंदामि |१| तुम्भेहिं, समं । 1 १ पढे बाद वारंवार पाठ करने आदिसे रक्षण करते हैं । २ पढतेहुए अधूरा नहीं छोडते हैं । ३ नहीं भूलके जन्मभर पार लगाते हैं । ४ वाचनादि पांचों प्रकारके स्वायाय से कीर्तन करते हैं : Jain Education nternational For Personal & Private Use Only www.jninelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192