Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat, 
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak

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Page 157
________________ वा नेव सयं मेहुणं सेविजा (सेतूं) नेवऽन्नेहिं मेहुणं सेवाविज्जा (सेवा) मेहुणं सेवंतेवि (सेवते भी) अन्ने न समऽणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतंपि अन्नं न समऽणुजाणामि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। से मेहुणे(मैथुन) चउविहे पन्नत्ते,तंजहा-दव्वओ खित्तओ कालओ भावओ,दव्वओणं मेहुणे ॥ रूवेसु' वारूवसहगएसुवा,खित्तओणं मेहुणे उड्ढलोए(ऊर्ध्व-ऊंचे-लोकमें)वा अहोलोए वा तिरियलोए वा,कालओणं मेहुणे दिआ वा राओ वा,भावओणं मेहुणे रागेण वा दोसेण वा,जंपिय मए इमरस धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अहिंसालख्खणस्स सञ्चाऽहिछियस्स विणय मूलस्स खंतिप्पहाणस्स अहिरण्णसोवण्णिअस्स उवसमप्पभवस्स नव बंभचेर गुत्तस्स अपयमाणस्स भिखावित्तिअस्स कुख्खी संबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणग्गाहियस्स निव्वियारस्स निव्वित्ति ॥१४॥ लख्खणस्स पंच महव्वय जुत्तस्स असंनिहि संचयस्स अविसंवाइयस्स संसार पार गामियस्स १ रूपमें(प्रतिमा चित्रादि या आभूषणरहित स्त्रो आदिमें)।२रूप सहगत(आभूषणसहित स्त्रो आदि)में । ३ अधो(नीचे)लोकमें। ४ तिर्यग् लोकमें। For Personal Private Use Only www.anelibrary.org

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