Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat, 
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak

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Page 148
________________ 15455555555555555555554 कुक्षि (पेट)मेंही,भातेवाले। नहीं अग्निके शरणवाले। सम्यगधोडालनेवाले । त्यागकियेद्वेष वाले। गुणग्रहणस्वभाववाले। निर्विकारचित्तवाले। कुख्खी.संबलस्स। निरग्गि सरणस्स। संपख्खालियस्स। चत्तदोसस्स। गणग्गाहियस्स।निव्वियारस्स। निवृत्ति लक्षणवाले। पांच महाव्रतोंसे युक्त(सहित)। नहीं संनिधि के संचय वाले। नहीं विसंवादवाले। संसारसे पार निवित्ती लख्खणस्स। पंच महव्वय जुत्तस्स । असंनिहि संचयस्स। अविसंवाइयस्स। संसार पार में पहुंचानेवाले। निर्वाणगमनरूप,पर्यवसान(अंतिम), फलवाले। पहले, अज्ञानतासे, अश्रवणता(न मुनने)से,अवोधितासे,नहीं स्वीगामियस्स । निव्वाणगमण,पज्जवसाण,फलस्स । पुट्विं,अण्णाणयाए,असवणयाए,अबोहियाए,अणs कारनेसे, १०स्वीकारनेसे,अथवा, ११प्रमादसे, रागद्वेषकी, प्रतिबद्ध(व्याकुल)तासे,बालभावसे, मोहपणेसे,मंदता(आलस्य)से, क्रीडाभावसे, भिगमेणं,अभिगमेण,वा,पमाएणं, रागदोस, पडिबद्धयाए, बालयाए.मोहयाए, मंदयाए, किड्डयाए. ॐ तीन गारवोंकी,गुरुता(भार)से,चार कषायोंके प्राप्त होनेसे,पांचों इंद्रियोंके,वश,आत(दुःख)से.(कर्मके)प्रतिपूर्ण(पूरे),भारिपणेसे,साता सौख्यको तिगारव, गरुयाए, चनक्कसाओवगएणं,पंचिंदियो,वस, ऽट्टेणं, पडिपुन्न*, भारियाए,साया सोख्ख । १ पेटमें खा सके, उससे अधिक लाके रात्रिमें रखनेका जिसमें निषेध है। २ टंडसे पीडाते हुए भी अग्नि तापनेकी मना है। x कर्मरूप मलको । ३ अथवा फ॥१३६॥ मिथ्यात्वादि दोष । ४ कामके उन्मादसे रहित । ५ सर्वसावध योगका त्याग ६ आहारादि । ७ संग्रह । ८ जिसमें पूर्वापर विरोध रहित कथन है। १ नहीं जाननेसे । १० या अनादरपूर्वक । 11 विषय-कषायादि । * अन्य पुस्तकोंमे 'पटुप्पनभारियाए' ऐसा पाठांतर है, इसका अर्थ यह है-(उपर कहे कारणोंये)उत्पन्न हुए(कर्मके)भारीपणेसे । Jain Education baserational For Personal sprivate Use Only La n elibrary.org

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