Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
View full book text ________________
छठि सहिया न अठमी,तेरसि सहियं न पक्खियं होइ। पडिवय सहियं न कयावि,इमं भणियं वीयरागेहि४ ॥ अर्थ-अष्टमीके कृत्य छठमें न हो,एवं पूनम अमावसके पाक्षिक कृत्य तेरस एकममें न हो,किंतु पूनम अमावस या चौदसमें करे,ऐसा वीतरागोंने कहा है ठाणात्ति हेमाचार्यजीके गुरुने लिखाहै चोथ संबच्छरि होणेसे-"पख्खियाईणिवि चउद्दसीए आयरियाणि,अण्णहा आगमुत्ताणि पुण्णिमाए"
उदयम्मि या तिहि सा, पमाणा इयरा उकिरमाणाणं । आणाभंगऽणवत्था,मिच्छत्त विराहणा पाव।५। अर्थ—सूर्योदयमें जो तिथि वो प्रमाण है, उसको अन्य तिथि करनेवालोंको आज्ञा भंग, अनवस्था, मिथ्यात्व,विराधना दोष लगे ॥२॥ कतिही वुढिए पुव्वा, गहिया पडिपुन्नभोगसंजुत्ता। इयरा वि माणणिज्जा,परं थोवत्ति न तत्तुल्ला ॥६॥ अर्थ-तिथिकी वृद्धि हो तो संपूर्ण भोगवाली पहलि तिथि आराध्य है,दुसरी भी मान्य है परंतु थोडि है वास्ते पहलिके तुल्य नहिं है ॥३॥
देववंदन देवेंद्रे कयु, श्रीवीर विप्र कुले जाण। गर्भ पुरुषोत्तम शक्रस्तवे, न गर्भ नीच अकल्याण ।। आषाढि मुदि छठे गर्भाधाने, मूरि हरिभद्रे कल्याण । अभयदेवमूरि श्रेयः कडं, न विष कुले अकल्याण ।२। न आवे आव्या गोत्र कर्मथी, श्री वीर ब्राह्मणी कूख । अवतरिया क्षत्रि कुंडे प्रभु, त्रिशला राणीनी कूख ।। ते आसोज वदि तेरसे, मान्यु त्रिशलार कल्याण । फल वीरे विप्र नीच कुलथी, ते किम कहूं अकल्याण । ४। इंद्रे भद्रबाहुए कह्यु ए, श्रेय कल्याण फल जे । निंद्य अकल्याणक भूत किम?,अहो जिनचंद्र वीर ते ।।
जग जीवन जग वाल हो, ए देशी- वीर जिणंद गुण गावसुं, जिम थाय आतम उद्धार लालरे । पुण्ययोगे प्रभु मुझ मल्यो, पंचम काल मझार लालरे, वीर० ॥१॥ जगदीसर परमातमा, जगबंधु जगनाथ लालरे । जग उपगारि जगगुरु तुमे,जग रक्षक शिव साथ लालरे, वीर० ।। जिन गुण कण पण कीर्तना, चिंतामणि सम जाण लालरे । अवगुण बोले गोशालोवळी जमाली दुःखनी
श्रीवीर स्तवन
555555
११६॥
१०८
Jain Education idea
al
For Personal Private Use Only
www.ininelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192