Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
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णकेज
अन्नत्थ ऽणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं ( गृहस्थके आगारसे) आनंटण (पग आदि भेले करने) पसारेणं(पसारनेसे) गुरु(गुरुके) अभुठ्ठाणेणं (अभ्युत्थानसेः)पारिठ्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्व समाहि
वत्तियागारेणं वोसि(रइ)रामि ४।५।६।तिविहार एकासणादिमें "पाणस्स लेवाडेण" के ये छ आगार साधु पञ्चरूखे, श्रावक नहीं पाणस पाणस्स(पाणीके।) लेवाडेण(लेपवाले )वा(अथवा)अलेवाडेण वा(नहीं लेपवाले ग्या)अच्छेण वा(स्वच्छ-निर्मल या)बहलेण, भलेवाडे
१ आहार करते समय कोइ गृहस्थ आजाय तो वह गृहस्थ यदि थोडीही देर टहरनेवाला हो तवतो उतनी देर खाना बंद रखे, परंतु अधिक देर ठहरनेका हो तो वहांसे आगार
ऊठकर दूसरी जगह जाके आहार करनेसे पञ्चख्खाण भंग नहीं होता, इसीतरह सर्पका आना, आगका लगना, पाणीकी रेलका आना तथा अकस्मात घरका पडना आदि उपद्रवोंसेभी ऊठके अन्यत्र जा सकताहै । २ एकठाणेके पच्चस्खाणमें 'आउंटणपसारेणं' यह पद नहीं बोलना। ३ अपने गुरु आचार्यादि तथा पाहुणे(साधु) के सत्कारके लिये खाते हुए (चाहे एकासणा-आयंबिल आदि हो तो) भी आसन छोडके खडे होजाना, इसमें एकासणे आदिका भंग नहीं होता । ४ बृहत्कल्प भाध्यमें पाठ “एएछ आगारा-साहणं, न पुण सट्टाणं" इति, संवत् ११८३ में बने हुए 'प्रत्याख्यान भाप्य' की टीकामें पाठ "एते पानकाकारा यतीनामेव, नतु श्राद्धानां, न खलु श्राद्धाः सर्मविरतप" इति । १ ये छ आगार तिविहार एकासगे आदिमें लेने केह, बहभी केवल साधुके वास्ते है, श्रावकके वास्ते नहीं, क्योंकि श्रावक सर्व विरति नहीं है, जैसे रात्रि दिवसचरिम तिविहार करके पाणी पीनेवाले गृहस्थ "पाणस्स लेवाडेण" (खजुर-कांजी-आटे आदिके लेपवाले पाणी केक ॥६७॥ आगार नहीं लेते, बैसेही दिनमेंभी नवकारसी पोरिसी एकासणा आंबिल उपवास आदिका तिविहार पचख्खाण करनेवाले गृहस्थोंको “पाणस्स लेवाडेण" के आगार नहीं लेने । २ चिकणासके कारण जो वासण आदिम चोटजावे, वैसे खजुर द्वाख आदिके पाणीसे। ३ चिकणास रहित कांजी साबुदाणे आदिका धोवण तथा छासकी आस आदि । ४ तीन उकालेका निर्मल उन्हा पाणी, वा अन्य किसी चीजसे वर्ण बदला नितराहुआ फासु पाणी ।
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