Book Title: Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat,
Publisher: Siddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
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पञ्च- 'नग्गए सूरे नमुक्कारसहि पोरिसी साढपोरिस सूरे नग्गए पुरिमड्ढ अवड्ढ, मुठ्ठिसहि पञ्चख्खाण पालनका कीधो चोविहार, एकासणो ,बियासणो,आंबिल एकासणो,निविएकासणो,एकठाणो,कीधोतिविहार, भावना 'चोविहार पच्चख्वाणफासिय(फरसाहो)पालियं ( पालाहो)सोहियं (शोभायाहो)तीरियं ('तोरित कीयाहो) किट्टियं ।
७३ (१°कीर्तन कीयाहो )जंआराहियं(जो आराधाहो)जं (जो)च (और)न आराहियं(नहीं आराधाहो तस्स मिच्छामि दुक्कडं। तिविहार सूरे नग्गए पच्चख्खाण कयुं तिविहार, पोरिसी साढपोरिसी पुरिमड्ढ अवड्ढ मुठिसहि पञ्चख्खाण उपदास पालनेकी कर्यु पाणाहर. पच्चरख्खाण फासियं पालियं० इत्यादि। *मुठ्ठिसहिअं पच्चख्खा(इ)मि० भावना
फफफफफफफफफफफफफमा
१ नवकारसीये लेके आंबिल एकठाणे तकके सब पचख्खाण पालनेकी यह भावनाहै । २ जो पचख्खाण किया हो उनका नाम लेके पञ्चरूखाण पालना । ३ यदि एकासणा 卐 बिवासणा आदि न होवे तो इसके आगे ‘पचरुखाण फासिवं पालिय' आदि वोलंदेना। ४ इन एकासणे आदिमसे जो कियाहो उसका नाम बोलना, बाकीके छोडदेना।
५ ये एकासणा आदि पञ्चख्खाण यदि तिविहार कीये होती चोविहारका नाम नहीं बोलना, यदि चौविहार किया होतो तिविदारका नाम नहीं बोलना । ६ "दिनका पूर्वभाग P आदि पारखाण लेनेके उचित कालमें गुर्वादिके साथ साथ खुदभी मनमें उच्चारण करना आदि विधिसे लेके । ७ ग्रहण कियाहुआ पचख्खाण हमेशां वारंवार उपयोग
रखके किसी प्रकार न भूले वैसे। ८ गुरुमहाराजको दिये बाद शेष यचंहुए आहारका सेवन करके। ९ नवकारसी पोरिसी आदि अपने किये पञ्चख्खाणकी मर्यादा पूर्णहोजाने ज परभी कल्याण की भावनासे थोड़ी देर टहरके तीर(कीनारे)पहूंचानेसे। 10 आदार करनेको बैठते समय मैंने नवकारसी आदि अमुक पचख्खाण कियाहै,वह पूरा हो चूका
वास्ने अब मैं आहार करंगा' ऐसा कहके"। x पंचवस्तुक टी० पत्र ९१: मूठसी पचरूखाण किया होतो पालनेमें "मुहि सहियं पचख्खाण फासियं पालिय०"इत्यादिवोलना।
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