Book Title: Pali Sahitya ka Itihas Author(s): Bharatsinh Upadhyaya Publisher: Hindi Sahitya Sammelan Prayag View full book textPage 7
________________ इतिहास है, हमें मिल जाता है। पालि में उपलब्ध सामग्री जो न मिलती तो फिर उस काल का हमारा इतिहास भी लुप्त हो गया होता। दो सहस्र वर्ष पहले का हमारा समाज, हमारे जीवन का तल, हमारी आशा आकांक्षायें, हमारी दिनचर्या, बुद्धि और कौतुक के सभी क्षेत्र कम या अधिक इस ग्रन्थ से हमें सुगम बन जाते हैं। संस्कृति का वह सूत्र जिसे हम भूल चुके थे, लेखक ने जिस मनोयोग से खोज निकाला है, उसका अभिनन्दन हम इसलिए करेंगे कि महत्त्व के ऐसे कठिन कार्य अर्थ और यश की कामना से सम्भव नहीं होते। गहरी निष्ठा, कठोर संकल्प, अडिग समाधि और अनासक्त बुद्धि से, व्यक्ति जब निर्माण में लगता है तभी वह ऐसी रचनायें दे सकता है। श्री उपाध्याय जी का सरल स्वरूप कितनी सरलता से पाण्डित्य का पर्वत उठा सका है, देख कर विस्मय होता है। अभी वे तरुण हैं और कार्य करने के अनेक वर्ष उनके सामने हैं। संकल्प और साधना की यही योगवृत्ति जो उनमें बनी रही तो वे अभी और कई ग्रन्थ रत्न हिन्दी भाषा को दे सकेंगे। लक्ष्मीनारायण मिश्र साहित्य मन्त्रीPage Navigation
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