Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala View full book textPage 8
________________ वाममार्गियों के हस्तगत था। सम्पूर्ण राजसत्ता उनके हाथ की कठपुतली बनी हुई थी। यज्ञ होमादि कार्यों में लाखों मूक पशुओं की बलि दीजाती थी। इस जघन्य पाशविक घोर हिंसात्मक आन्दोलन से जहां तहां रक्त की नदियां बहती थीं। इस भांति उस पापाचार के साथ ही साथ मांस मदिरा तथा अनाचार, अत्याचार, और व्यभिचार का प्रचुर प्रचार अपनी चरम सीमा तक पहुँच चुका था। इस प्रकार जनता, वर्ण, जाति-पांति के कीचड़ में अपना सर्वथा नाश कर रही थी, अतएव वाममार्गियों के विपुल प्रचार से भारत में करुणनाद की चीत्कारसेसर्वत्र त्राहि त्राहि की दुंदुभि अपना शब्द करने लगी, तथा जनता एवं विश्व को ऐसे विकट अवसर पर एक महान् शक्ति की आवश्यकता पड़ी, जिससे विश्व में अपूर्व शांति का प्रचार हो, उसी समय हमारे चरित्र नायकजी का पदार्पण इस मरुभूमि में हुआ उनका शुभ नाम था "जैनाचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी" जिस महत्व पूर्ण घटना का हम यहां वर्णन कर रहे हैं, उस समय इसी मरुधरभूमि में व्यापार का विशाल केन्द्र स्थल उपकेशपुर नाम का एक सुन्दर मनोहर नगर था। वहां के शासनकर्ता महाराजाधिराज उत्पलदेव थे जो श्रीमालनगर के राजा भीमसेन के लघु पुत्र थे। उन्हीं के बाहुबल एवं परमपुरुषार्थ से यह नगर जन, धन, धान्य-पूर्ण हुआ था अर्थात् इस नृपति ने इस नगर को प्राबाद किया था । जैसा कि कहा हैShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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