Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ २६ ] मंत्रीश्वर ने पुनः निवेदन किया कि हे भगवन् ! हम नहीं जानते कि जैन धर्म किस पदार्थ का नाम है ? इस धर्म में क्या विशेषताएं हैं ? क्या कृपा कर आप हम लोगों को समझायेंगे ?
मंत्री के प्रेरित वचनों को सुन कर सूरीश्वरजी ने अपने दिव्य ज्ञान रूपी अमृत वारि का वर्षण करते हुए अपनी मधुर, रोचक एवं प्रोजस्वी भाषा द्वारा इस प्रकार जैनतत्वज्ञान का विस्तृत विवेचन कर समझाया कि राजा प्रजा के हृदय में चिरकाल से जो मिथ्यात्व एवं प्रज्ञान के संस्कार थे वे सब एक दम ध्वस्त होगये जैसे सूर्य के प्रकाश से अन्धकार नष्ट हो जाता है। यदि उस उपदेशामृत का संक्षिप्त सार उपस्थित श्रोता. गण के कानों तक पहुँचा दिया जाय तो भी असंगत न होगा।
"इस अपार संसार में जीवों को परिभ्रमण करते हुए मनुष्यजन्म, आर्यक्षेत्र, उत्तमकुल, शरीर आरोग्यता, इन्द्रियपरिपूर्णता, दीर्घायुष्यादि उत्तम सामग्री का मिलना अति दुर्लभ है। यदि किसी जन्म के पुख्योदय से पूर्वोक्त सामग्री का सहयोग मिल भी गया तो भी सत्संग के लिए निस्पृही महात्माओं का साक्षात्कार होना तो अति दुष्कर है यदि ऐसा भी हो जाय तो भी सदुपदेश का श्रवण करना तो विशेष कठिन है। पर महानुभावों ! जिस सामग्री का दुर्लभपना ज्ञानियों ने बतलाया है वह सब सामग्री आज आप लोगों को सरलता से प्राप्त हो गई है अब आप लोगों का खास कर्तव्य है कि आत्म कल्याणार्थ सद्धर्म की परीक्षा करें जैसे कि कनक की परीक्षा की जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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