Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ ४० ] लगे कि हे भगवन् ? हम अनाथों को आपने सनाथ बना दिया-हमारी इस डूबती हुई नाव के खेवैये बन कर हमारा उद्धार किया है आप ही हमारे देव और आप ही हमारे गुरु हैं। आप ही हमारे धर्मदाता और आपके वचन ही हमारे लिए शास्त्र हैं-भगवन् ? हम हमारी अन्तरात्मा से प्रण करते हैं कि आज से हम आपके अनुयायियों के सच्चे उपासक बन गये हैंयावत् सूर्योदय, प्राची के निरभ्र कोने से होगा और चन्द्रमा प्राकाश में स्थित रहेगा पृथ्वी सहनशीलता की देवी बनी रहेगी-नभोमण्डल सत्य के सहारे स्थिर रहेगा; तावत् हमारो सन्तान जैन धर्म की उपा. सना करेगी और आप जैसे प्राचार्यों की सेवा करती
रहेगी।
इसी समय चक्रेश्वरी देवी रत्न जडित सुवर्ण थाल के अन्दर वासक्षेप लेकर आचार्य रत्नप्रभ सूरि के समक्ष उपस्थित हुई। प्राचार्य देव ने, उपस्थित राजा मन्त्री और नागरिक अर्थात् राजपुत्र, ब्राह्मण वैश्य आदि सवा लक्ष *
सपादलक्ष श्रावकाणां प्रतिबोधः कृतः । भावुकों को पूर्व सेवित मिथ्यात्व की आलोचना करा
केपटावल्यान्तरों में श्रावकों की संख्या ३८४००० की भी बतलाई है शायद इसका कारण यह हो कि प्रारम्भ में १२५००० ही हो और पश्चात उपकेशपुर के आस पास भ्रमण कर और भी अजैनों को जैन बनाया हो उन सबकी संख्या ३८४००० की हो तो यह बात सम्भव
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