Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 57
________________ [ ५३ ] कुतूहल के लिए अनेक प्राणियों के प्यारे प्राणों का नाश करवाती हो तो न जाने भविष्य में तुमको कैसी गति मिलेगी परन्तु यह निश्चय समझ लेना कि इस घोर पातक का फल परम्परा नरक ही है इत्यादि बोध वचनों के कहने से देवी वापिस कुछ भी उत्तर नहीं दे सकी पर उसके अन्तर का रोष नहीं गया। श्रावक लोग तो देवी की पूजन कर वहाँ से चले आए तत्पश्चात् सूरिजी भी अपने निवासस्थान पर पधार गये। देवी चामुण्डा ने सोचा कि कलिकाल के प्रारम्भ में ही यह बात ? जिन महात्मा को मैंने विनती कर यहाँ रखा इतना उपकार कराया परन्तु उन्होंने तो मेरा भक्ष्य ही छुड़वा दिया खैर ! इसका बदला तो अवश्य लेना चाहिए। "एकदा छलं लब्ध्वा देव्या प्राचार्यस्य काल वेलायां किंचित् स्वाध्यायादि रहितस्य वामनेत्र भूरधिष्टिता वेदना च संजाता" किसो अकाल के समय सूरिजी स्वाध्यायध्यान रहित थे, देवी ने उस अवसर को देख आचार्य श्री के नेत्र में वेदना करदी वह भी असह्य परम दारुण कि साधारण मनुष्य उसको सहन भी नहीं कर सकता, पर प्राचार्य देव ने तो उसे अपना पूर्व संचित कर्म समझ सम्यक प्रकारेण सहन किया। जब चक्रेश्वरी अंबिका पद्मावती और सिद्धायकादि देवियां सूरिजी को बन्दन करने को आई तो सूरिजी के नेत्र में अतुल वेदना देखी उन्होंने अपने अतिशय ज्ञान द्वारा जाना कि यह बेदनाचामुंडा ने की है तो शीघ्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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