Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ ५२ ] कुतूहल मात्र करने में असंख्य मूक प्राणियों के जीवन को नष्ट कर देते हैं इत्यादि सूरिजी के वचन सुन कर उनको विश्वास तो हुआ परन्तु चिरकाल के संस्कार होने से उनके दिल से घबराहट निकल नहीं सकी। इस पर सूरीश्वरजी ने कहा कि यदि आपको देवी का पूजन ही करना हो तो सात्त्विक पदार्थ जैसे लड्डू खाजे गुलरसादि फल फूल वगैरः बहुत पदार्थ हैं कि जिनसे पूजा कर सकते हो। श्राद्ध वर्ग ने वे ही पदार्थ बनवाकर सूरिजी से अर्ज की कि भगवान् !ापहमारेसाथ पधारिये। इस पर स्याद्वाद के समुद्र और उत्सर्गोपवाद के परमज्ञाता श्रावकों के साथ देवी के मन्दिर में पधारे । श्रावकों ने वह पूजा सामग्री देवी के सन्मुख रख दी। देवी उसे देखते ही आग बबूला हो उठी और खड़ग लेकर श्रावकों के सामने देखने लगा, इतने में तो सूरीश्वरजी दीख पड़े और प्राचार्य श्री ने कहा"प्राचार्यैः प्रोक्तं देवि ? कडडकं मड्डकं दत्तमस्ति"
हे देवी? यह श्राद्ध वर्ग आपको कड़के मड़के दे रहे हैं आप इसको खीकार करें। इस पर देवी ने कहा, भगवन् !
__ "ततः प्रोक्तं प्रभो ? मया अन्यं कड़कं मड़क याचितं, अन्यं दत्तं"
हे विभो? मैंने कुछ अन्य याचना की (मांस मदिरा) और आपने कुछ और ही दिया है। मैं इनसे सन्तुष्ट नहीं हूँ। इस पर प्राचार्य देव ने फरमाया कि हे देवी! पूर्व जन्म में तो तुमने बहुत जीवों की रक्षा प्रादि सुकृत किया है जिससे तुमको देवयोनि मिली है परन्तु केवल
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