Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 61
________________ [ ५७ ] और धर्म की प्रबल भावना सब के दिल में असाधारण थी। सज्जनों ! प्राचार्य रत्न प्रभसूरि ने उपकेशपुर नगर में जो महाजनवंश की स्थापना की वह बहुत अरसेतक तोउसी नामसे चलता रहा पर बाद कई कारणोंसे उपकेशपुर के लोगोंने अन्य स्थानों में जाकर वास किया । तब लोग उनको उपकेशी कहने लगे-जैसे महेश्वरी नगरी से महेश्वरी, आगरा से अगरवाले खंडवा से खण्डेलवाल इत्यादि अनेक नगरों के नाम से जातियों के नाम उत्पन्न हुए । उपकेशपुर और उसके आस पास विहार करने वाले मुनियों को भी लोग उपकेशगच्छ के नाम से संबोधन करने लगे जैसे वल्लभी से वल्लभीगच्छ, नाणकपुर से नाणावलगच्छ, सांडेराव से सांडरागच्छ, वायटनगर से वायटगच्छ, इत्यादि।। विक्रम की बारहवीं शताब्दी के आस पास उपके. शपुर का अपभ्रंश नाम श्रोसियाँ हुआ तब से वहाँ रहने वालों का नाम “ोसवंश-ओसवाल" हुआ, तथापि शिलालेखों और ग्रन्थों में तो आजपर्यन्त उपकेशपुर और उपकेशवंश ही लिखा जा रहा है जोकि मूल नाम था। सारांश यह है कि जिस नगर को आज हम प्रोसियाँ कहते हैं उसका मूल नाम उपकेशपुर था और जिस जाति को वर्तमान में हम ओसवाल कहते हैं उसका मूल नाम उपकेशवंश था। उपकेशवंश (ोसवाल) की उत्पत्ति स्थान उपकेशपुर (ोसियों) और प्रतिबोधक श्राद्याचार्य श्री रनप्रभसूरि इसमें तो पुराने विचार और नये विचार वाले सब सहमत हैं अब रहा इस घटना का समय इसमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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