Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala

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Page 59
________________ [ ५५ ] के सामने यह भी विश्वास दिलाया कि यदि महावीर देव का पूजन और आचार्य श्री या इनकी वंश परम्परा सन्तान की सेवा उपासना जो लोग करते रहेंगे मैं कुमारी कन्या के शरीरमें अवतीर्ण हो उन भक्तों के दुःख दारिद्र को चकनाचूर कर मनोकामना पूर्ण करूंगी. कहा है कि "कुमारिका शरीरे श्रवतीर्णासती इति वक्ति भो मम सेवकाः ! श्रत्र उपकेशपुरस्थं स्वयंभू महावीर विम्बं पूजयति श्रीरत्नप्रभाचार्यं उपसेवति भगवतः शिष्यं प्रशिष्यं वा सेवति तस्याहं वशं गच्छामि तस्य दुरितं दलयामि तस्य पूजां चित्ते धारयामि एतानि शरीरे अवतीर्णा सा कुमारी कथयति श्री सच्चिका देव्या वचनात् क्रमेण श्रुत्वा प्रचुरः जनाः श्रावकत्वं प्रतिपन्नाः” देवी के पूर्वोक्त वचन श्रवण करके और भी बहुत से लोग जैन धर्म स्वीकार कर श्रावक बन गये । हो ! यह कैसा श्रात्मिक बल एवं पुरुषार्थ ? हो ! यह कैसा दिव्य चमत्कार एवं शक्ति ? श्रहो ! यह कैसी उपकार की पराकाष्ठा ? श्रहो ! यह कैसी धर्म प्रचार की उत्कण्ठा ? आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि और उनके शिष्य समुदाय ने उसी प्रान्त में भ्रमण कर मिथ्यात्व प्रवृत्ति को समूल नष्ट कर जैन धर्म का प्रचुरता से प्रचार किया । इधर महाराजा उत्पलदेव पहाड़ी पर प्रभु पार्श्वनाथ का मन्दिर बना रहे थे वह भी तैयार हो गया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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