Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ ५६ ] जिसकी प्रतिष्ठा भी प्राचार्य श्रीके करकमलों से बड़ेही समारोह के साथ करवाई गई। वह मन्दिर आज पर्यन्त विद्यमान है पर कई असौ से इस नगर में जैनों के न होने के कारण अन्य लोगों ने पार्श्वनाथ की मूर्ति उठाकर उसके स्थान में देवी की मूर्ति स्थापन करदी है इस विषय में मेरा लिखा “जैन जाति महोदय" नामक ग्रन्थ अवश्य देखना चाहिये।
प्राचार्य रत्नप्रभसूरिने अपने जीवनका अधिक भाग अजैनों को जैन बनाने में ही व्यतीत किया पहावलियों से ज्ञात होता है कि प्राचार्य श्री ने अपनी जिन्दगी में चौदह लक्ष अजैनों को जैन धर्म का परमोपासक बना के"अहिंसा परमोधर्म:" का प्रचुरतासे प्रचार किया और अनेक मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवा के मरुस्थल प्रदेश में जनता के कल्याण के लिये कल्पवृक्ष लगा दिया । धन्य है ऐसे लोकोत्तर महापुरुषों को।
महाराजा उत्पलदेव ने प्राचार्य श्री की अध्यक्षता में मरुधर प्रान्तसे शāजय गिरनारादि तीर्थोकी यात्रार्थ एक विराट संघ निकाला जिसमें मनुष्यों की संख्या पञ्चलक्ष की कही जाती है और ऐसा होना असंभव भी नहींहै कारण यहपहले पहलही पवित्र धर्मकार्य था और उस समय जनता का उत्साह भी ऐसा ही था तीर्थयात्रा करने की सब के दिल में एक सी लगनथी भला ऐसी हालत में यात्रा से वंचित रहना कौन चाहता ? इस संघका वंशावलियों में विस्तृत वर्णन किया गया है यहां तक कि यात्रार्थ पधारने वाले स्वधर्मि भाइयों को सुवर्ण के थालों की प्रभावना देना भी लिखा है बात भी ठीक है उस समय भारत बड़ा ही समृद्ध था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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