Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ ३९ ] वन् ! हम सब लोग जैन धर्म स्वीकार करने को तैयार हैं कृपाकर हमको जैनी बनाकर हमारा उद्धार कीजिए"।
प्राचार्य देव ने कहा“जहां सुख्खम्" इस सुअवसर पर निभ्रान्त व्योम भांति भांति की ध्वनि करने लगा। विमानों से विद्याधर एवं नर नारिये अपने सुकोमल कण्ठ से गुण गान करते हुए गुरुदेव के पादपद्मों में पुष्प वृष्टि करने लगे-तत्तण आकाश मण्डल देव दुन्दुभिनाद से प्रानन्दालाप करने लगा और रटने लगा प्राचार्य के अनुपम गुण। देखते देखते ही अंबिका, चक्रेश्वरी, पद्मावती और सिद्धायिकादि देवियों ने सूरिजी के शुभ वन्दनार्थ पाकर श्रद्धा पूर्वक नमस्कार किया। इन अलौकिक दृश्यों के अवलोकन मात्र से ही राजा मंत्री तथा दर्शक गण पाषाणमूर्तिवत् होगए और मनहीमन सोचने लगे "अहो हम कितने अभागे हैं कि ऐसे मुनि रत्न को कंकर समझ कर उनकी अवज्ञा की इस प्रकार की हमारी निष्ठुरता • कितनी निन्दनीय है-हम इस घोर पाप से कब मुक्त
हो सक्त हैं ? इस प्रकार के अनेकानेक क्षण भंगुर से विचार उनके हृदयों में उत्पन्न होते और मन ही मन विलीन हो जाते-क्षमा याचना के लिए प्रयास करने पर लज्जास्पद बालक की भांति बोलते २ उनके प्रोष्ठ बन्द होजाते थे।
राजा, मन्त्री, और सब जन, जैन धर्म को स्वीकार करने के लिए अति आतुर हो रहे थे-उनकी इतनी उत्कट उत्कण्ठा थी कि लोगों ने अपने गलों से जनेऊ को तोड़ तोड़ कर आचार्य श्री के चरणों पर न्योछावर
कर दी और हाथ जोड़ कर नम्र भाव से प्रार्थना करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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