Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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[ ३३ ] तोड़ परम पद प्राप्त किया है क्या कायरों ने पूर्वोक्त कार्य किये हैं ? कदापि नहीं।।
भूपते ! जैनों की अहिंसा ने जनता को कायर नहीं बनाया पर वीरता का हो पाठ पढ़ाया अल्पज्ञ लोगों को अभी तक यह मालूम नहीं है कि अहिंसा में एक बड़ी भारी बिजली सो शक्ति रहो हुई है। जितना काम अहिंसा कर सकती है उतना हिंसा नहीं कर सकती है। अहिंसा के कहर उपासक होते हुए भी वे वीर और प्रतापी हैं। वे बाह्य शत्रुओं की अपेक्षा प्रात्मा के अनादि काल के प्राभ्यन्तर शत्रुओं का ध्वंस कर शुभ गति प्राप्त करने में ही अपनी शक्ति का विशेष उपयोग किया करते हैं। इसलिए जैन धर्म की अहिंसा कायरता का उद्योतक नहीं पर वीरता को पराकाष्टा है।
(७) जैन धर्म ने धर्म साधन का अधिकार शूद्रों तक को दे दिया। यह कोई नई बात नहीं है । परन्तु प्राणी मात्र को अपना कल्याण करने का अनादि से हक्क है। धर्म का ठेका किसी व्यक्ति ने नहीं ले रखा है यह तो करे उसका ही धर्म है। जव यह कहा जाता है कि चराचर प्राणी ईश्वर की संतति है तो फिर धर्माराधन में यह कुत्सित विचार क्यों ? संक्षिप्त में सारांश यह है कि
जैन-नास्तिक नहीं पर कहर आस्तिक है। जैन-ईश्वर को मानते हैं और उपासना भी
करते हैं। जैन-मृष्टि को ईश्वर कृत नहीं पर अनादि अनंत
मानते हैं।
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