Book Title: Oswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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जैन - जीवों को सुख दुःख भुगताने को ईश्वर नहीं पर कर्मी को मानते हैं ।
जैन - की हिंसा में कायरता नहीं पर बड़ी भारी वीरता रही हुई है ।
जैन - वीतराग दशा की मूर्तियों की उपासना करते हैं ।
जैन-धर्म आत्मकल्याण करने का अधिकार प्रत्येक प्राणी को देता है ।
धराधिप ! जैनधर्मावलम्बी किन देव, गुरु, धर्म, और आगम को मानते हैं उनका भी संक्षिप्त से परिचय करा देता हूँ ।
(१) देव - अर्हन्त - वीतराग- सर्वज्ञ विश्वोपकारी जिनके पवित्र जीवन और शांत मुद्रा में इतनी उत्तमता, उदारता, विशालता और परोपकारता उस २ के भरी हुई है कि जिसको पढ़ने सुनने से तो क्या पर दर्शन मात्र से ही जनता का कल्याण हो जाता है । उनका धर्म इतना विशाल है कि चराचर प्राणी उपासक बन सद्गति के अधिकारी बन सक्ते हैं । ऐसे देव को हम जैन लोग देव मानते हैं ।
(२) गुरु - जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और निस्पृहता एवं पंच महाव्रत को सम्यक् प्रकार से पालन कर, कनक कामिनो और सांसारिक सर्व उपाधियों से और सर्व प्रकार के कुव्यसन और विलासिता से विरक्त हैं इतना ही नहीं पर अपना जीवन ही जनोपकार के लिए अर्पण कर चुके हैं वे ही गुरुपद के आसन को सुशोभित कर सक्ते हैं । अर्थात् ऐसे महात्माओं को ही गुरु समझ कर उपासना करनी चाहिए ।
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